Tuesday 19 March 2019

अभी बहुत कुछ बाँटना है आप सबके बीच


हमारे विगत चालीस वर्षों की जीवन-यात्रा के कुछ पड़ावों, जो कुछ सच्ची कुछ झूठी के आवरण में लिपटे हैं, से आपका भी गुजरना हुआ. इन पड़ावों पर आपका ठहराव कैसा रहा? अपना तो इनमें से किसी भी पड़ाव पर ठहराव नहीं हुआ. जितनी देर इनका सामना जीवन से होता रहा, उतने पल वहाँ रुककर उसका आनंद लिया, उससे कुछ सीखा और फिर सतत यात्रा को आगे बढ़ गए. सामान्य रूप में आत्मकथा लिखने के सन्दर्भ में चालीस वर्ष का जीवन बहुत बड़ा जीवन नहीं समझा जाता मगर अनुभवों की व्यापकता उम्र की न्यूनता पर भारी पड़ जाती है. कुछ ऐसा ही लिखने के दौरान हुआ. क्या लिखा जाये, क्या छोड़ा जाये? क्या दिखाया जाये, क्या छिपाया जाये? कितना सबके साथ बाँटा जाये, कितना अपने पास सुरक्षित रखा जाये? किसकी बात की जाये, किसकी बात न की जाये?

ऐसा होना स्वाभाविक था भी क्योंकि चालीस वर्ष की इस जीवन-यात्रा में इतने सारे अनुभव मिले जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. उम्र से अधिक अनुभव, घटनाएँ देखने के कारण ही मन में ख्याल आया आत्मकथा लिखने का. अच्छी घटनाएँ भी सामने आईं तो बुरी घटनाओं ने भी अपना रूप दिखाया. लोगों के विश्वास ने दिल जीता तो अपनों के अविश्वास ने अन्दर तक तोड़ा. मीठे अनुभवों ने ज़िन्दगी को स्वादिष्ट बनाया तो कड़वे अनुभवों ने ज़िन्दगी के इस स्वाद से भी परिचित करवाया. ये अपना-अपना देखने का नजरिया होता है. कोई कैसे भी देखता है, कोई कैसे भी देखता है. हमने किसी भी घटना से, किसी भी स्थिति से अपने आपको निपटने के लिए तैयार कर रखा था.

हर घटना ने कुछ न कुछ सिखाया ही है. इसके पीछे भी पारिवारिक परवरिश बहुत मायने रखती है. ज़िन्दगी में भले ही किसी बात की, किसी चीज की भरमार न रही हो, भले ही कमी न रही हो मगर यदि कभी सुख-संसाधनों की उपलब्धता न हो तो उनके बिना भी ज़िन्दगी को हँसी-ख़ुशी गुजारा जा सकता है, ये बचपन से ही सीखने को मिला. परवरिश इस तरह रही कि खुद ठोकर खाई और खुद सीखा. परिवार में भी इस तरह के उदाहरण सामने आते रहे, जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. आत्मविश्वास को प्रबल बनाकर कैसे विपरीत स्थितियों पर विजय पाई जा सकती है, ये भी परिवार से सीखने को मिला. 

युवावस्था में जबकि हॉस्टल में रहने का अवसर आया तो उस जीवन ने भी एक शिक्षक की भांति कार्य किया. रोज नया दिन, रोज नया अध्याय, रोज नई सीख. ज़िन्दगी भर के अनुभवों, ज़िन्दगी भर की सीखों में से चंद यादों को, चंद अनुभवों को सबके सामने रखना बहुत कठिन लगा. किसी एक घटना को लिखने बैठा जाता तो उससे सम्बंधित न जाने कितनी अन्य घटनाएँ सामने आकर खड़ी हो जातीं. जिस घटना को याद न करने की कोशिश की जाती वह हर बार पन्नों पर उतरने को आतुर दिखाई देती.

फिलहाल, छोटी सी ज़िन्दगी में जो बहुत कुछ देखा है, उससे सीखा है, उसको अपने तरीके से देखा है उसी को आपके सामने रखा है. जैसा कि पहले भी आप सबसे निवेदन किया था कि कुछ सच्ची कुछ झूठी आदर्शात्मक आख्यान नहीं है, किसी तरह का कोई प्रवचन नहीं है, किसी को राह दिखाने का कोई साधन नहीं है. हम तो इतनी ही कामना कर सकते हैं कि आपने हमारे इन अनुभवों को उतनी ही सहजता से स्वीकारा होगा, जितनी सहजता से हमने स्वीकार कर आपके सामने प्रस्तुत किया.

कुछ सच्ची कुछ झूठी ऐसे तमाम अनुभवों का आरम्भ है, इतिश्री नहीं. उम्र के इस पड़ाव पर आकर अपनी बात कहने का साहस किया है तो महज इस कारण कि बहुत कुछ है आप सबसे बांटने को. इसके बाद भी इसका ध्यान रखा गया कि ऐसे सत्य को उघाड़ने के प्रयास से बचना है जो किसी को परेशान कर जाए, किसी के जीवन में उथल-पुथल मचा जाए. 

तमाम कड़वे, खट्टे, बुरे अनुभवों के बाद भी खुद को सदैव सकारात्मक स्थिति में रखा है. ऐसा नहीं है कि हम रोये नहीं हैं, हमारे आंसू नहीं बहे हैं मगर जो स्थिति साथ वालों को कमजोर करे वह हमें कभी स्वीकार नहीं रही. इसी सोच के चलते आँसुओं को अपने भीतर ही बहाकर सबका स्वागत मुस्कुराकर, खिलखिलाकर किया गया. एक छोटी सी हँसी सबको सदैव प्रसन्न रखती है, सकारात्मकता का प्रसार करती है. सोचिये, इस सोच के साथ कैसे किसी के जीवन में बवंडर मचा दिया जाता, महज आत्मकथा में सत्य उघाड़ने की मंशा से. इसका अर्थ यह भी नहीं कि झूठ कहा गया है. झूठ कुछ नहीं है, बस लोगों की भावनाओं को हताहत होने से बचाने के लिए या तो वे घटनाएँ प्रस्तुत ही नहीं की गईं हैं और यदि दर्शायी भी गईं हैं तो उन पर मासूमियत का, काल्पनिकता का एक आवरण चढ़ा दिया गया है.

कुछ सच्ची कुछ झूठी तो एक आरम्भ है, अपने अनुभवों को, अपने जीवन को सार्वजनिक करने का. एक बार मन का संकोच मिट हो जाये, दिल का धड़का खुल जाए फिर सभी तरह के डर गायब हो जाते हैं. इस एक आरम्भ ने न जाने कितनी राहें खोल दी हैं. आने वाले समय में हमारे जीवन के और भी पक्ष अन्य रूपों में आपके सामने आयेंगे. हमारे आत्मीय, शुभचिंतकों के बारे में, हमारे मित्रों के बारे में, हमारी हॉस्टल लाइफ के बारे में, हमारी प्रेम-कहानियों के बारे में, हमारे सामाजिक-राजनैतिक जीवन के बारे में, हमको लेकर लोगों की सोच और लोगों को लेकर हमारी सोच के बारे में भी आने वाले समय में लिखा जायेगा.

बहुत से आत्मीयजन ऐसे हैं जिनका सन्दर्भ यहाँ किया जाना चाहिए था मगर कतिपय कारणोंवश ऐसा नहीं हो सका. आखिर सारी बातें यहीं कर ली जाएँगी तो आगे क्या कहा जायेगा. ये समापन नहीं, शुभारम्भ है. आप सभी के सहयोग बिना आगे बढ़ना संभव नहीं. आगे भी चलना आपके साथ होगा, अकेले नहीं. सो, आप सभी अपने विचारों, अपनी राय, अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएँगे, ऐसा विश्वास है.

कुछ सच्ची कुछ झूठी की अगली कड़ी का इंतजार कीजिये. हमें खुद भी इंतजार है, अपने बारे में जानने का. शीर्षक क्या होगा, ये अभी संशय में है, कुछ सच्ची कुछ झूठी की तरह ही.

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