Sunday, 4 February 2018

तीन बेटियों से रोशन घर-परिवार


छोटे भाई पिंटू ने अपनी भतीजी का नाम परी उसके जन्म के पहले ही रख दिया था. हॉस्पिटल के लिए निकलती अपनी भाभी को उसकी प्यार भरी धमकी भी मिली कि यदि लड़का हुआ तो हम आपको घर नहीं लायेंगे. शाम का समय होने के कारण महिला चिकित्सालय में बहुत ज्यादा भीड़ तो नहीं थी मगर लोग पर्याप्त संख्या में थे. छोटे भाई की ख़ुशी, उसका मिठाई बाँटना, घर, परिवार, परिचितों को फोन द्वारा परी होने की सूचना देना वहां मौजूद सभी लोगों को आश्चर्य में डाल रहा था. क्या डॉक्टर्स, क्या नर्सेज, क्या बाहर बैठे लोग सभी को बेटी के होने पर ऐसी ख़ुशी देखकर अचम्भा ही हो रहा था. 

समाज में जहाँ एक तरफ बेटी के होने पर रोना-पीटना, मातम जैसा बोझिल माहौल सा बन जाता है वहाँ दूसरी तरफ उस चिर-परिचित माहौल के उलट हम सभी लोग प्रसन्न थे. न केवल भाई ही बल्कि सभी परिजन भी खूब खुश थे. किसी बड़े-बुजुर्ग की नजर में पहली संतान के रूप में पुत्री का जन्म होना हमें भाग्यशाली बना रहा था तो कोई इसे लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में वरदान बता रहा था.

यह ख़ुशी अगले वर्ष उस समय दोगुनी हो गई जबकि परी की छोटी बहिन पलक का जन्म उसी जिला महिला चिकित्सालय में हुआ जहाँ स्वयं उसका जन्म हुआ था. परी के जन्म पर समूचे परिवार के रिश्तों को नया नाम मिला था क्योंकि वह हमारे परिवार की पहली संतति थी. कोई बाबा-दादी, कोई नाना-नानी, कोई चाचा-चाची, कोई मामा-मामी, कोई बुआ, कोई फूफा, कोई मौसी, कोई दादा. पलक के जन्म पर हम ताऊ-ताई बने और परी के जन्म पर झूमते भाई-बहू बने माता-पिता. पलक का जन्म ऑपरेशन से हुआ था. मोहल्ले की चाची के स्नेहिल संरक्षण में जब यह तय हो गया कि सामान्य प्रसव नहीं हो पायेगा तो स्वभाव से अत्यंत मधुर, मृदुभाषी, मिलनसार और हमारे प्रति विशेष सदिच्छा रखने वाली महिला सीएमएस डॉ० जैन सूचना पाते ही तत्काल आईं. वे ऑपरेशन थियेटर में तब तक रहीं जब तक कि प्रसव प्रक्रिया पूर्णतः सफल, सुरक्षित संपन्न न हो गई. ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकलने पर उनके शब्दों कुमारेन्द्र जी, आपका कन्या भ्रूण हत्या निवारण कार्यक्रम सफल रहा, पुत्री का जन्म हुआ है ने हमें उत्साहित कर दिया.

हम दोनों भाइयों की पहली संतान पुत्री रूप में हमको, परिवार को सौभाग्य देने आ चुकी थी. पलक के जन्म पर वही ख़ुशी, वही मिष्ठान वितरण, घर लौटकर वही आतिशबाजी जो परी के जन्म पर हुई थी. चंद वर्षों के इंतजार के बाद सबसे छोटे भाई मिंटू (देवेन्द्र सिंह सेंगर) और बहू को भाग्यशाली होने का गौरव मिला. परी, पलक की छोटी बहिन पारुल ने जन्म लिया. दोनों बड़ी बहिनों की तरह पारुल का जन्म भी जिला महिला चिकित्सालय में ही हुआ था. वहां के स्थायी स्टाफ के लिए यह आश्चर्य का विषय था कि एक परिवार में तीसरी बेटी के जन्म के बाद भी किसी आम परिवार जैसा रोना-पीटना नहीं हो रहा था. उरई में जन्म से निवास करने के कारण, मामा-मामी के जिला चिकित्सालय से सम्बंधित होने के कारण और फिर हमारे कन्या भ्रूण हत्या निवारण कार्यक्रम के सञ्चालन के कारण चिकित्सालय स्टाफ परिचित था.

तीनों बेटियों के जन्म पर एक विशेष बात जो हमने गौर की वो ये कि परी के जन्म पर वहां का तृतीय-चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नजराना जैसा कुछ भी मांगने से हिचक रहे थे. उसका कारण था पुत्री का जन्म होना. इसके बाद भी हम लोगों की तरफ से ख़ुशी-ख़ुशी उनकी अपेक्षा से अधिक उनको दिया गया. कुछ इसी तरह की हिचक पलक के जन्म के समय भी देखने को मिली थी. उनकी हिचकिचाहट के बाद भी उन सभी की ख़ुशी का ख्याल रखा गया. दो बेटियों के होने पर यह स्टाफ हम सबकी मानसिकता, चरित्र से परिचित हो चुका था. ऐसे में पारुल के होने पर उन सबने ख़ुशी-ख़ुशी स्वेच्छा से अपनी माँग को सामने रखा. जिला चिकित्सालय में कार्यरत हमारे एक मित्र ने कहा कि बहुत कम देखने को मिलता है ऐसा परिवारों में. इस कारण आपकी ख़ुशी में हम सब भी शामिल होकर नजराना लेने की हिम्मत कर पा रहे हैं.

यह बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच का सुखद परिणाम है कि हम तीनों भाइयों की पहली संतति बेटी है. अक्षयांशी, दिव्यांशी, अन्वितांशी रूप में तीन देवियाँ हमारे घर-परिवार को खुशहाल बनाये हुए हैं.