Tuesday 5 August 2014

इंतजार उस एक फोन का


कुछ बातें व्यक्ति के जीवन में बहुत प्रभावी न होने के बाद भी प्रभावी बनकर रहती हैं. ऐसी बहुत सी बातें होती हैं जिनका सम्बंधित व्यक्ति के अलावा किसी और के लिए कोई महत्त्व नहीं होता है. हमसे ही सम्बंधित बहुत सी बातों का किसी और के लिए हो सकता है कोई महत्त्व न हो मगर प्रत्येक बात का अपना एक सन्दर्भ होता है, उसका अपना एक प्रभाव होता है. यही बातें ही हैं जो व्यक्ति के अंतर्संबंधों का, सह-संबंधों का आकलन करती हुई उनका विश्लेषण करती हैं. ऐसी ही बातों में अगस्त का पहला रविवार, जिसे फ्रेंडशिप डे के नाम से जाना जाता है, हमारे साथ जुड़ा हुआ है. कोई विशेष बात न होने के बाद भी एक अलग तरह की सुगंध का एहसास उस दिन होता है.

उस दिन रविवार था, अगस्त का पहला रविवार. उन दिनों मोबाइल सपने में भी सोचा नहीं गया था. बेसिक फोन की घंटी घनघनाई. रविवार होने के कारण सभी लोग घर में ही थे. घनघनाती फोन की घंटी रुकी और उधर से हमको पुकारते हुए अम्मा बोली, किसी लड़की का फोन है. 

दिमाग की सारी घंटियाँ घनघना गईं. हैलो के साथ हैप्पी फ्रेंडशिप डे की खनकती आवाज़ कानों में घुल गई. कोई विशेष दिन मनाये जाने का न चलन था और अपनी आदत के अनुसार हम ऐसे किसी दिन के प्रति सजग-सचेत नहीं थे, सचेत-सजग तो आज भी नहीं रहते हैं. सेम टू यू कहने के बाद कुछ और आगे कहते उससे पहले ही दूसरी तरफ से उलाहना आकर कानों में गिरा, आप पहले फोन करके विश नहीं कर सकते थे? 

उलाहना देने का अंदाज़ भी इतना गज़ब कि अपनी आदत के अनुसार ठहाका मारते हुए हमने इतना कहा, दोस्ती में ऐसी औपचारिकता हम नहीं करते. 

दो-तीन मिनट के बाद जब फोन रखा तो समझ नहीं आया कि इस तरह की हलकी-फुलकी मधुर नोंक-झोंक के बाद बात समाप्त हुई या बात शुरू हुई? समय गुजरता रहा. वक्त बदलता रहा. स्थितियाँ-परिस्थितियाँ बदलती रहीं मगर बात ख़तम होकर जहाँ शुरू हुई थी वो न बदली. अगस्त आता रहा. अगस्त का पहला रविवार आता रहा. हर बार की तरह फोन उधर से ही आता रहा. हर बार विश करने के बाद वही मधुर उलाहना दिया जाता रहा, आप पहले फोन करके विश नहीं कर सकते थे? हमारा वो ठहाकेदार जवाब वैसे ही निकलता रहा.

सबकुछ बदलने के बाद भी लगता है जैसे कुछ न बदला. दोस्ती की नोंक-झोंक न बदली. दोस्ती का वो बेलौस अंदाज़ न बदला. अगस्त बार-बार आता रहा. अगस्त में पहला रविवार बार-बार आता रहा. एक आदत सी हो गई अगस्त के पहले रविवार को फोन आने की, एक उलाहना दिए जाने की. आने वाले न जाने कितने वर्षों तक अगस्त आता रहेगा, अगस्त का पहला रविवार भी आता रहेगा, उसका उलाहना भरा फोन भी आता रहेगा.