Wednesday 15 March 2017

ख़ुशी का पल समेटे आना हुआ भांजेश्री का


हम सभी लोग हॉस्पिटल की पहली मंजिल पर बने बरामदे के बाहर बैठे हुए थे. चाचा-चाची, बहनोई साहब संदीप सिंह और हम. हॉस्पिटल में बैठे होने के बाद भी किसी के चेहरे पर तनाव नहीं था. सभी को खुशखबरी का इंतजार था. वहाँ बैठे हम लोगों में कुछ देर बाद कोई पापा बनने वाला था, कोई नाना-नानी बनने वाला था और हम मामा बनने वाले थे. हम सभी लोग हँसी-ख़ुशी ऑपरेशन थियेटर की तरफ जाते गलियारे पर अपनी-अपनी निगाहें टिकाये हुए थे. छोटी बहिन दीपू की पहली संतति संसार में आँखें खोलने का इंतजार कर रही थी. ऐसे खुशनुमा माहौल में हमारे बहनोई साहब थोड़ा व्याकुल से नजर आ रहे थे. उनकी व्याकुलता जहाँ ऑपरेशन को लेकर थी वहीं वे अपने पापा जी के वहां न दिखाई पड़ने से भी चिंतित दिख रहे थे. एक-दो बार ऊपर-नीचे देख आने के बाद भी पापा जी उनको न दिखाई दिए. 

वे और हम भी दो-तीन बार ऑपरेशन थियेटर की तरफ चक्कर लगाकर खुशखबरी का पता-ठिकाना पूछ चुके थे. इसी बीच बहनोई साहब कुछ प्रसन्न सी मुद्रा में और भी ज्यादा आकुलता से अपने पापा को खोजने लगे. ऑपरेशन थियेटर की तरफ से प्रसव सुरक्षित होने का इशारा मिला तो हम सब ख़ुशी से झूम उठे. दरवाजे पर नर्सों की एक झलक पाकर उनसे होने वाले बच्चे के बारे में जानना चाहा, उसके स्वास्थ्य के बारे में जानना चाहा, बच्चा लड़का है या लड़की जानना चाहा पर वे मुस्कुराकर अन्दर चली गईं. संभवतः बहनोई साहब ने उनको न बताने के लिए कह रखा था. उसके पीछे का कारण ये भी समझ आया कि वे सबसे पहले इस खुशखबरी को अपने पापा को देना चाहते होंगे. उनसे भी जानने की कोशिश की तो वे हाथ उठाकर मुस्कुराते हुए पापा की खोज में नीचे उतर गए.

सब्र यहाँ किसी को नहीं था, आखिर हम भी मामा बन रहे थे. चाचा-चाची भी नाना-नानी बन रहे थे. बहनोई साहब के नीचे उतरते ही हम बरामदे से लगे बगल के कमरे में घुसे. इसी कमरे से ऑपरेशन थियेटर का रास्ता जाता था, जो नर्सिंग होम के स्टाफ द्वारा उपयोग किया जाता था. जिन नर्सों की झलक दिखाई पड़ी थी, उनमें से दो वहीं बैठी थीं. हमने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा, कहाँ है बच्चा? भोपाल शहर की आबोहवा में बुन्देलखण्ड की तेज़ आवाज़ सुनकर वे शायद सहम सी गईं. ये जानते-समझते ही हमने उनसे कहा कि हम बच्चे के सबसे बड़े मामा हैं. उसमें से एक नर्स ने मुस्कुराकर रुकने का इशारा किया. 

अगले पल ही वो अपनी गोद में नन्हे से भांजे को लेकर प्रकट हो गई. उसके हाथ से हमने अपने हाथों में लेकर उसके माथे पर आशीर्वाद स्वरूप अपने होंठ लगा दिए. कोमल, मुलायम, मासूम से अपने भांजे को एक निगाह जी भर कर देखने के बाद उसे उसी नर्स के सुरक्षित हाथों में सौंप दिया. ख़ुशी जैसे रोम-रोम से प्रकट हो रही थी. पर्स से कुछ रुपये निकालकर नवजात शिशु की न्योछावर करके नर्स से कहा कि किसी कामवाली बाई को दे देना. एक नर्स ने हँसकर कहा कि क्या मामा जी, हमने भांजे के दर्शन करवाए, हमें कोई नजराना नहीं? बिना कुछ कहे, मुस्कुराकर उन तीनों को भी यथोचित नजराना देकर हम बाहर आ गए.

इसी दौरान बहनोई साहब अपने पापा जी को लेकर मिठाई सहित आ गए. उनके पापा जी गहरी धार्मिक आस्था वाले सुकोमल, सहृदय व्यक्ति हैं. वे उसी समय से नर्सिंग होम के पास बने एक छोटे से मंदिर के सामने ध्यानमग्न होकर भगवान की साधना में बैठ गए थे जैसे ही दीपू को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया था. जिस समय हम अन्दर अपने भांजे को देख रहे थे, उसी समय बहनोई साहब ने आकर नवजात शिशु के लड़का होने की बात सबको बताई. हमें गायब देखकर हमारे बारे में वे पूछ ही रहे थे कि हमने अन्दर से आकर सबको आश्चर्य में डाल दिया कि हम सबसे पहले अपने भांजे से मिल आये.

हॉस्पिटल में कुछ दिन रुकना पड़ा. चाची, बहनोई साहब, हम लगातार समय-समय से रुकते. नर्सिंग होम से छुट्टी मिलने पर हम ही अपने भांजे, छोटी बहिन दीपू को लेकर उनके घर पहुँचे, जहाँ उसके चाचा अपने पहले भतीजे के इंतजार में पटाखे सजाये बैठे थे. आतिशबाजी के साथ पापा, मम्मी, छोटू ने अपने परिवार के नए सदस्य का स्वागत किया. 

हमारे भांजे श्री आज भी हम सबके अत्यंत प्रिय हैं. हमारे बाद की पीढ़ी में हमारे परिवार की पहली संतति होने के कारण, पहले भांजे होने के कारण प्रिय तो हैं ही. इसके अलावा यह संयोग ही कहा जायेगा कि उसके जन्म के कुछ समय बाद छोटी बहिन दीपू की ट्रेनिंग उरई रहकर ही पूरी हुई और फिर उसकी नियुक्ति भी उरई के नजदीक उन्नाव में हो गई. इससे भी नियमित रूप से भांजे श्री से हम सबका संपर्क बना रहा. बचपन के साथ-साथ अपना कैशौर्य भी ननिहाल वालों के साथ गुजारने के कारण भी वे हम सबके प्रिय बने हुए हैं.

बुन्देलखण्ड में मामा-भांजे का जो रिश्ता है, उस रिश्ते के चलते वो सारे मामाओं की हँसी-मजाक का शिकार भी बनता है. इसका एक उदाहरण हमारे द्वारा किया गया उसका नामकरण भी है. सबके द्वारा बुलाये जाने वाले सनय सिंह अपने जन्म से ही हमारे द्वारा कल्लू सिंह पुकारे जा रहे हैं, अभी भी इसी नाम से पुकारे जाते हैं. मुँह बनाकर उसका चिढ़ना होता रहता है और हमारे साथ-साथ उसके और मामा लोग भी उसे चिढ़ाने का आनंद लेने लगते हैं.