Saturday 30 June 2018

पहली कविता लिखी बचपन में


पहली कविता, जो दैनिक भास्कर, स्वतंत्र भारत में प्रकाशित हुई थी. कब, कैसे कविता लिखने का शौक चर्राया, पता नहीं. जितना याद आता है वो अक्टूबर या नवम्बर का समय था. सर्दी की हलकी कंपकंपी और सूरज की मोहक गर्माहट मन को भा रही थी. इसी में कुछ शब्द निकले, लयबद्ध एकसाथ गुंथे और पहली कविता इस रूप में सामने आ गई. 

पिताजी को भी पढ़ने-लिखने का शौक था. उन्होंने इसे दो-तीन समाचार-पत्रों में प्रकाशनार्थ प्रेषित कर दिया. परिणामतः यह कविता दैनिक भास्कर और स्वतंत्र भारत में प्रकाशित हुई. बहुत समय तक दोनों समाचार-पत्र पिताजी के संग्रह में रहे. अब पिताजी भी नहीं और उनका संग्रह भी नहीं; पर कविता आज भी पास है, अब आपके सामने है. सन 1983 में प्रकाशित उस कविता के समय उम्र थी महज दस वर्ष. लीजिये, कविता पढ़िए- 

रोज सबेरे आता सूरज,
हमको रोज जगाता सूरज.

पर्वत के पीछे से आकर,
अँधियारा दूर भगाता सूरज.

पंछी चहक-चहक कर गाते,
सुबह-सुबह जब आता सूरज.

ठंडी-ठंडी पवन चले और
फूलों को महकाता सूरज.

गर्मी में आँख दिखाता हमको,
सर्दी में कितना भाता सूरज.

पूरब से पश्चिम तक देखो,
कितनी दौड़ लगाता सूरज.

चंदा तारे लगें चमकने,
शाम को जब छिप जाता सूरज.

काम करें हम अच्छे-अच्छे,
हमको यह सिखलाता सूरज.