Friday 10 March 2017

सम्मान हमारी कलम को, लेखन को


मंचासीन सत्र अध्यक्ष की ओर से इशारा होते ही संचालक महोदय ने भोजनावकाश का संकेत किया. राजकीय महाविद्यालय, चरखारी के सभागार में मनोविज्ञान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में उपस्थित लोग अपनी-अपनी जगह से उठकर भोजन कक्ष की तरफ चल दिए. कुछ लोग अतिथियों से परिचय का आदान-प्रदान कर रहे थे. कुछ लोग धीरे-धीरे चलते हुए विषय से सम्बंधित विद्वानों से विमर्श करते जा रहे थे. एक हॉल में भोजन की व्यवस्था की गई थी. आधुनिक परिपाटी से इतर सभी अतिथियों को, आमंत्रितजनों को कुर्सी-मेज पर ससम्मान बिठाकर भोजन करवाया जा रहा था. वरिष्ठजनों को आगे बढ़ाते हुए उरई से एकसाथ पहुँचे हम कुछ मित्र अपने बैठने की व्यवस्था देखने में लग गए. 

तभी आप वही कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी हैं जो अमर उजाला में लिखते हैं? के द्वारा एक लड़की ने अपना संशय दूर करना चाहा. उसके प्रश्नवाचक वाक्य को जैसे ही हमारी सहमति मिली उस लड़की सहित अन्य चार-पांच छात्र-छात्राओं के चेहरे पर अनोखी चमक सी फ़ैल गई. उन लोगों के द्वारा अभिवादन करने, उनके हावभाव से ऐसा लगने लगा जैसे बहुत बड़ा नाम उन लोगों के सामने खड़ा हो.

अभी तक प्रकाशित हो चुके तमाम पत्रों की सामग्री, उसी राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत किये गए शोध-पत्र की चर्चा, आगे किस विषय पर लिखेंगे सहित कई विषयों पर बात हुई. उन लोगों ने इस पर भी राय माँगी कि वे लोग भी लिखना चाह रहे हैं, कैसे लिखा जाये, कैसे छपा जाये, क्या लिखा जाये जिसे पढ़ा जा सके आदि-आदि. एक तरफ उन लोगों के द्वारा बातचीत का क्रम जारी था और दूसरी तरफ वे छात्र-छात्राएं हम लोगों के लिए उसी हॉल में एक किनारे कुर्सी-मेज की अतिरिक्त व्यवस्था कर चुके थे. ऐसा समझ आया कि सबके बीच हम लोगों को बिठाकर वे अपनी बातचीत का, संपर्क का अवसर खोना नहीं चाह रहे थे. भोजन करवाते समय उनका आसपास रहना, उसके बाद सभागार में भी साथ-साथ रहना, अनेक बिन्दुओं पर चर्चा करना, लेखन सम्बन्धी अपनी समस्याओं-जिज्ञासाओं का समाधान चाहना हमें अपने आपमें अद्भुत अनुभव करवा रहा था. 

टीवी पर किसी कलाकार, लेखक, साहित्यकार आदि द्वारा अधिकतर यह कहते सुना कि उसका सबसे बड़ा सम्मान उसके पाठकों, दर्शकों का प्यार, स्नेह, समर्थन है. तब ऐसी बात बड़ी आदर्शात्मक लगती थी किन्तु चरखारी के उस अनुभव ने उस आधार पर खड़ा कर दिया जहाँ कि अपने प्रशंसकों का प्यार, स्नेह, सम्मान ही सबसे बड़ा पुरस्कार लगता है. उरई से चरखारी जाते समय हमारे अन्दर उत्साह, रोमांच था अपनी पहली राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में सहभागिता करने का. अब जबकि चरखारी से उरई के लिए वापसी कर रहे थे तब अपनी लेखन-क्षमता का विस्तार, अपने पाठकों का प्यार मिलता देखकर अपार ख़ुशी का अनुभव हो रहा था.