राजनैतिक,
सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, खेलकूद, फिल्म आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ व्यक्ति
बहुत जल्दी जनमानस के दिल-दिमाग में छा जाता है. कोई-कोई व्यक्ति तो अपने
प्रशंसकों के बीच भगवान के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है. बहुत से प्रशंसकों को
इनके लिए दीवानगी की हद तक पागल होते देखा है. हमारे सामने भी अनेक क्षेत्रों में
अनेक व्यक्ति ऐसे हुए हैं जिनके हम प्रशंसक रहे हैं, आज भी हैं. ऐसे व्यक्तित्वों
से मिलने की इच्छा रही, आज भी है. कुछ लोगों से मिलना संभव हो गया. कुछ लोगों से
अब कभी मिल पाना संभव नहीं. कुछ लोगों से मिलने की इच्छा अभी है, कोशिश है कि जल्द
से जल्द उनसे मुलाकात कर ली जाये. अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गाँधी, बाल
ठाकरे, कपिल देव, अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित आदि नाम ऐसे हैं जिनसे मिलने की इच्छा रही. इंदिरा जी
से मुलाकात भले न हो पाई हो पर उनको देखने-सुनने का अवसर बहुत नजदीक से मिला. अटल
जी से मिलना कॉलेज टाइम में हुआ था.
आज भी याद है
हास-परिहास के उसी चिर-परिचित अंदाज में उनका बोलना. उनके चरणों का स्पर्श, उनका
प्यार से सिर पर हाथ फिराना. खुश रहो का आशीर्वाद देना. ग्वालियर के
शैक्षिक प्रवास के दौरान अनेकानेक गतिविधियों में सहभागिता बनी ही रहती थी. ऐसी ही
एक सहभागिता के चलते पता चला कि अटल जी का एक कार्यक्रम है. हम हॉस्टल वालों को
कुछ जिम्मेवारियों का निर्वहन करना है. कोई मंच की व्यवस्था में, को खानपान की व्यवस्था में, कोई जलपान की व्यवस्था में, कोई यातायात की व्यवस्था
में लगा हुआ था. सहज आकर्षित करने वाले, सम्मोहित करने वाले,
मुस्कुराते चेहरे के साथ अटल जी मंचासीन हुए.
अटल जी से
मिलने का लोभ हम हॉस्टल के भाइयों में था. व्यवस्था हमारे ही हाथों थी सो कभी कोई
किसी बहाने मंच पर जाता, तो कभी कोई किसी और बहाने से. आज की तरह कोई तामझाम नहीं, कोई अविश्वास नहीं, फालतू का पुलिसिया रोब नहीं.
मंचासीन अतिथियों से मिलने का सबसे आसान तरीका था पानी के गिलास पहुँचाते रहना.
तीन-चार बार की जल्दी-जल्दी पानी की आवाजाही देखने के बाद अटल जी ने मुस्कुराते
हुए बस इतना ही कहा कि क्या पानी पिला-पिलाकर पेट भर
दोगे? भोजन नहीं करवाओगे? अपने
पसंदीदा व्यक्ति से बातचीत का अवसर, बहाना खोजते हम लोगों से
पहला वार्तालाप इस तरह मजाकिया, सवालिया अंदाज में हो जायेगा,
किसी ने सोचा न था. हम सब झेंपते हुए मंच से उतर आये मगर कार्यक्रम
के बाद भोजन के दौर में खूब बातें हुईं. खुलकर बातें हुईं.
ऐसी ही आकर्षित
करने वाली व्यक्तित्व की धनी थीं हमारी बुआ विजयाराजे सिंधिया. बचपन में बुआ
जी के उरई आने पर मिलना हुआ मगर दो-चार बार ही. बाद में ग्वालियर में स्नातक की पढ़ाई
के दौरान उनसे खूब मिलना हुआ. ग्वालियर आने पर वे अक्सर बुलवा लेती थीं और फिर उरई
के, घर के हालचाल विस्तार से
लेती थीं. उनसे मिलने के बाद अपार ऊर्जा का संचार हो जाता. वे भले ही हमारी बुआ जी
बनी रहीं मगर सादगी और जनसेवा के चलते जन-जन ने उनको राजमाता के रूप में स्वीकार किया
था.
बाल ठाकरे और
अमिताभ बच्चन से मिलने की लालसा उस समय और तीव्र हो गई जबकि अपनी छोटी बहिन पूजा
(पुष्पांजलि राजे) के पास मुंबई जाना हुआ. पारिवारिक यात्रा के दौरान मुंबई में
घूमना भी हुआ मगर इन दो शख्सियतों से मुलाकात संभव न हो सकी. समय का चक्र कुछ ऐसा
गुजरा कि बाल ठाकरे से मिलना हो ही नहीं सका.
समय के साथ
बहुत से लोगों से मुलाकात हुई, अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज व्यक्तित्वों से मिलना
हुआ, उन्हें सुनना हुआ. कुछ लोग सहजता से मिले, कुछ बड़ी जटिलता के दर्शन करवा गए.
मिलने-जुलने के क्रम में इक्का-दुक्का लोग ही ऐसे रहे जिनसे मिलना सुखद लगा. उनके
साथ फोटो खिंचवाने का, उनके ऑटोग्राफ लेने का मन हुआ. हाल-फ़िलहाल लालकृष्ण
आडवाणी जी से मिलने की इच्छा है. देखना है कि ये इच्छा कब पूरी होती है.