वो दिन न केवल हमारी
कक्षा के लिए बल्कि पूरे कॉलेज के लिए कौतूहल भरा था. ऐसा होना भी था क्योंकि लड़कों
से भरे जीआईसी में उस दिन तीन लड़कियों ने एडमीशन लिया. ऐसा माहौल पूरे कॉलेज के छात्रों
में दिखाई देने लगा जैसे बंजर जमीन पर कोई फूल निकल आया हो. इसके साथ ही ऐसा लग रहा
था जैसे हमारी कक्षा में कोई अजूबे आ गए हों. उन तीनों लड़कियों ने इंटरमीडिएट में जीवविज्ञान
की जगह गणित वर्ग को चुना था, इस कारण उनको जीआईसी में प्रवेश लेना पड़ा था. राजकीय
इंटर कॉलेज के अलावा उरई में उस समय राजकीय बालिका इंटर कॉलेज भी संचालित हुआ करता
था किन्तु वहाँ गणित वर्ग न होने के कारण उन तीनों लड़कियों को राजकीय इंटर कॉलेज में
प्रवेश दिया गया था.
कक्षा में
बैठने-बिठाने को लेकर किसी तरह की अव्यवस्था उत्पन्न न हो इसके चलते उन तीनों लड़कियों
के बैठने की जगह आगे की पंक्ति में अलग से निर्धारित कर दी गई. पूरी कक्षा उन तीन के
आने से पगलाई तो थी ही, अब आगे बैठने के लिए बौराने लगी. वे लड़के जो अध्यापकों के सवालों और निगाहों
से बचने के लिए सबसे पीछे या बीच में बैठना पसंद करते थे, वे
भी अब आगे बैठने को उतावले दिखने लगे. आगे बैठने के लिए कई बार कक्षा में विश्व युद्ध
जैसी स्थिति बन जाती. उस समय तक उरई में कोई भी विद्यालय सह-शिक्षा के रूप में
चर्चा में नहीं था. या तो सिर्फ लड़कों के अध्ययन के लिए विद्यालय संचालित थे या कि
लड़कियों के लिए. ऐसे में सह-शिक्षा का आरम्भ दिखाई देने पर वह स्थिति भी अपने
आपमें चर्चा का विषय बनी हुई थी.
चर्चाएँ कुछ दिनों
तक ही सीमित न रहीं. वे लड़कियाँ दो साल हम लोगों के साथ पढ़ीं. दोनों ही साल आये दिन
कोई न कोई कहानी बनती रही. कभी लड़कियों से बात करने के सम्बन्ध में, कभी लड़कियों को गिफ्ट देने के सम्बन्ध में,
कभी लड़कियों के साथ ट्यूशन में पढ़ने को लेकर. उन तमाम तैरती कहानियों
के बीच कई बार वे लड़के भी सवालों के घेरे में ले लिए जाते जो किसी न किसी रूप में उन
लड़कियों के संपर्क में थे. एक लड़की से पूर्व-परिचित होने के कारण कई बार ऐसी स्थिति
से हमें भी गुजरना पड़ा.
आज उरई में तमाम विद्यालय सह-शिक्षा रूप में संचालित हैं, लड़के-लड़कियाँ
एकसाथ न केवल पढ़ रहे हैं बल्कि एकसाथ उठ-बैठ रहे हैं, एकसाथ आ-जा रहे हैं. ऐसी
स्थिति में बदलाव के कई-कई आयाम देखने को मिले. कहानियों के बदलने के दौर दिखे,
चर्चाओं के बदलते स्तर दिखे.