Thursday, 25 September 2014

बिना गलती सजा स्वीकार नहीं

नई दिल्ली के विकासशील समाज अध्ययन केन्द्र (सीएसडीएस) से जुड़ना नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में डॉ० आदित्य कुमार जी के कारण हुआ. इस संस्था द्वारा कराये जाते चुनाव सर्वे में बुन्देलखण्ड टीम का हिस्सा बनने का अवसर कई बार मिला. अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी और निष्ठा भाव से कार्य को सदैव सपन्न करते रहे. सन 2004 में सीएसडीएस द्वारा एशियाई बैरोमीटर निर्धारण करने वाली टीम में उत्तर प्रदेश की तरफ से शामिल होने का मौका मिला. इसकी तैयारियों से संदर्भित दो दर्ज़न राज्यों के सदस्यों की एक कार्यशाला नोएडा में आयोजित हुई, जिसमें शामिल होने का अवसर मिला. वहाँ क्या, कैसे हालात बने, क्या कुछ सीएसडीएस को हमारे बारे में बताया-सुनाया गया कि हमारे खिलाफ मौखिक निर्देश निर्गत किया गया, टीम से बाहर किये जाने का. ऐसा सब हुआ बिना हमारा पक्ष सुने. यदि यह शांति से स्वीकार कर लिया जाता तो कहीं न कहीं अपनी उस गलती को स्वीकारना था जो न तो हमने की और न ही हमें बताई गई. 

इसी सन्दर्भ में निम्न पत्र सीएसडीएस को भेजा गया. जिसके बाद अगली वर्कशॉप में ससम्मान बुलाये जाने जैसा कदम सीएसडीएस द्वारा उठाया गया.

श्रीमान जी,
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
आशा एवं विश्वास है कि ‘अब’ आप लोग ‘ज्यादा’ प्रसन्न होंगे.

वैसे नववर्ष पर एशियाई बैरोमीटर का निर्धारण करने वाली स्वप्निल सीएसडीएस टीम के बेदखल सदस्य का ‘पत्र’ पाकर आप लोगों की खीझ भरी औचक प्रतिक्रिया तो मन में उभरी ही होगी. चलिए समय की बर्बादी न करते हुए सीधे मुद्दे पर आया जाये, (वैसे भी आप लोगों क पास समय की ही कमी है.) वो यह कि किसी भी निर्णय को ख़ामोशी से स्वीकार लेना उसमें छिपे दोषों की स्वीकार्यता को बढ़ाता है वहीं सही समय पर किसी निर्णय पर ओढ़ी गई ख़ामोशी को तोड़ना बुद्धिमत्ता का परिचायक तो कहा ही जा सकता है. हमारे ऊपर निर्णय लेने में समूची सीएसडीएस टीम लग जाएगी, यह कभी सोचा भी नहीं था किन्तु निर्णय लेने की अतिशय जल्दबाजी और अत्यधिक अहं भाव ने आप लोगों को कुछ महत्त्वपूर्ण पलों से वंचित कर दिया. हालाँकि बेदखल करने का हमारा उदाहरण देकर आपने कुछ हित अवश्य ही साधने का प्रयास किया है किन्तु बहुत कुछ आप लोगों ने खो भी दिया है. क्या खोया है यह आप लोग सोचिये.

कुछ बातें हम तक छन कर पहुँची और कुछ सीधे पहुँची तो सार निकला कि ‘ऑफ़ दरिकॉर्ड’ बातों को रिकॉर्ड करने में आपके कथित सहयोगियों का जवाब नहीं. क्या कुछ हमने कहा, क्या कुछ आपके भेदियों ने सुना और क्या कुछ आपके कानों को सुनाया गया, पता नहीं पर परिणाम यह कि ‘कुमारेन्द्र इस सर्वे में काम नहीं करेंगे’ के रूप में सामने आया. यहीं आकर सवाल खड़ा होता है कि आगे कौन काम करना चाहेगा? आप लोगों की अपने बारे में सोच अच्छी होगी (होनी भी चाहिए) पर कभी यह सोचा है कि इस अच्छी सोच का कारण क्या है? हम जैसे तमाम investigators जो आप लोगों की तरह एसी में बैठकर नीति निर्धारण का काम नहीं करते हैं; बातों के बताशे नहीं फोड़ते हैं.

आपकी ओर से बात आई कि हमने आपकी (सीएसडीएस) की पॉलिसी पर सवाल उठाये हैं. क्या आप लोगों को अपनी पॉलिसी निर्विवाद लगती है? आप लोग खुद कहेंगे ‘नहीं’ फिर अपने दोषों का ठीकरा औरों के सिर क्यों फोड़ा जाता है? नॉएडा वर्कशॉप में तो किसी तरह की चर्चा ही नहीं हुई थी (होती भी तो खुलकर होती क्योंकि अपनी आदत चुगली करना नहीं है, जो कहते हैं खुलकर कहते हैं, सभी के सामने कहते हैं. यह तो आप प्रश्नावली पर चर्चा के दौरान देख ही चुके हैं.) पर अब जब यह आरोप लग ही गया है तो थोड़ा खुलकर दौर चलें तभी सही मजा है.

1- पहली बात तो यह कि आप लोग अपने सच्चे हितैषी लोगों को भूलने की परम्परा का निर्वाह करते हैं. यह बात तो सिंह साहब आप स्वीकारेंगे क्योंकि आपको हर बार ‘फ्रेशर’ ही चाहिए होते हैं. इसके अलावा स्व० प्रदीप जी तो याद होंगे ही आपको, जिनके देहांत के बाद आयोजित कार्यशाला में दो शब्द भी सीएसडीएस की ओर से नहीं निकल सके थे. (पता नहीं प्रदीप जी अब आप लोगों की स्मृति में हैं भी या नहीं?)

2- बात जब फ्रेशर की आई तो आपको बताते चलें कि आपको ‘काम करने वालों’ की जरूरत है न कि सहयोगियों की. जैसे किसी इमारत को बनाने में मजदूरों की अहमियत सामान ढोने तक है, किसी भी तरह की सही-गलत परिभाषा देना उसकी सीमा में नहीं आता है. इसके उलट सहयोगियों द्वारा प्रत्येक दोष को दूर करने का प्रयास होता रहता है. (पता नहीं आ कब इस तथ्य-सत्य को समझेंगे?

3- पॉलिसी मेकर्स को सबसे बुरा तब लगता है जब उसकी पॉलिसी पर ही सवाल खड़े होने लगें. सीएसडीएस को समूचे विश्व के सामने खड़ा करने की ललक में कुछ कमियों को नजरअंदाज किया जा सकता था किन्तु जब बात purity और surity की हो और ‘बैरोमीटर’ का निर्धारण हो तो किसी भी तरह की हीलाहवाली नहीं होनी चाहिए. इसके बदले हमारे सिंह साहब कहते हैं कि पिछले सर्वे को भूल जाइए, फ्रेशर की जरूरत है. क्या यह सही पॉलिसी है? सोचियेगा, गलती कौन बताएगा? विश्व समुदाय के सामने गलत डाटा के साथ सिर ऊँचा करेंगे या सिर ऊँचा रखने को रिजल्ट (मनमाफिक) पहले से ही तैयार रहता है?

4- आपका एशियाई बैरोमीटर का प्रोजेक्ट पिछले कई वर्षों से मात्र धन के अभाव में रुका पड़ा था (जैसा कि आपका कहना था). सोचने वाली बात है कि इतने बड़े सर्वे में खर्च हो रहे करोड़ों रुपयों के बाद शुद्धता और शत-प्रतिशतता को सिद्ध करने के लिए आप लोग investigators के क्षेत्र में री-सर्वे करवाने की बात करते हैं. क्या यह investigators पर अविश्वास नहीं? और आप गलत आँकड़े (किसी भी कारण से) लेकर विश्व समुदाय के सामने जायेंगे तो क्या कोई आप लोगों को re-check करने वाला वहां होगा? नहीं होगा न..!! (विश्वास या मजबूरी या धन की अधिकता)

5- धन देने वाली बड़ी-बड़ी फंडिंग एजेंसीज को अपने धन को खपाने वाला कोई माध्यम चाहिए और उस माध्यम के ऊपर एक प्रकार का विश्वास. आप लोग investigators के लिए न तो बड़ी फंडिंग कर पाते हैं और न ही उन पर विश्वास कर पाते हैं और न ही उन्हें सुरक्षा ही दे पाते हैं. क्या यह स्थिति महज कामगार मजदूरों के साथ लागू नहीं होती?

6- जहाँ तक investigators की सुरक्षा का प्रश्न है तो वह केवल अपनी ही सुरक्षा व्यवस्था के सहारे क्षेत्र में जाता है. किसी भी तरह की institutional सुरक्षा के बिना क्षेत्र में उतर कर अलग-अलग व्यक्तियों से बात करना आसान तो नहीं. आप लोग कहते हैं कि आपने भी संवेदनशील विषयों पर संवेदनशील जगहों पर सवालों को उठाया है पर क्या उनकी भाषा-शैली और शब्दावली उतनी ही ‘सरल’ (पता नहीं कितनी सरल) रहती है जितनी कि आपके सर्वे की आपकी प्रश्नावलियों की होती है?

7- आगे बात आती है आप लोगों की नीति निर्धारण को लेकर दिए गए कोरे आश्वासनों की. प्रथमतः तो आइडेंटिटी कार्ड और investigators की सुरक्षा को लेकर बात करना बंद करें (वैसे भी इस पर अधिक चर्चा न होकर बैग और उसकी क्वालिटी पर चर्चा होती है). इस बार का आइडेंटिटी कार्ड जबरदस्त आश्वासनों के बाद भी थर्ड क्लास ही कहा जायेगा (किसी की निगाह में और गिरावट हो तो पता नहीं). वह भी छपे हुए हस्ताक्षरों वाला, जिसकी कोई भी कीमत नहीं. तब investigators की सुरक्षा?

8- यह तो आप भली-भांति जानते होंगे कि किसी भी सर्वे एजेंसी को अपने कार्यकर्ताओं को फील्ड में भेजने के पूर्व उनका बीमा करवाना आवश्यक हो गया है. आप लोग इस प्रकार का रिस्क लेना नहीं चाहते और investigators भी पता नहीं क्यों खामोश है? या तो उसे पता नहीं या वह किसी पर्सनल रिलेशन के कारण सर्वे कर रहा है. क्या यह बिंदु आपकी पॉलिसी का खोखला हिस्सा नहीं है?

9- क्या कभी सोचा है कि एक investigators जो लड़का, लड़की कुछ भी हो, मात्र एक-दो हजार के मानदेय के लिए फील्ड में रिस्क लेने को तैयार होता है या और कोई कारण होता है? आप लोगों की संस्था की साख (credit) समूचे देश और विश्व (बैरोमीटर के निर्धारण के बाद) के सामने बढ़ाने वाला investigator उसी तरह क्षेत्र में भागदौड़ करता गौरवान्वित (झूठे ही) होता रहता है और आप लोग एसी का मजा लूटते हैं. क्या यह सब अच्छी पॉलिसी की निशानी है?

10- आपकी सच्ची  पॉलिसी का निर्धारण तो हमें हटाने के बाद ही हो गया. आप लोगों की भृकुटी तनी थी, उत्तर प्रदेश की टीम में किसी लड़की के न होने से. (आप लोग महिलाओं को प्राथमिकता क्यों देते हैं, पता नहीं.) पर हमें निकाले जाने के बाद क्या आप लोगों को लड़कियाँ मिल गईं? सिंह साहब कहते हैं कि जो इस बार नॉएडा वर्कशॉप को ज्वाइन नहीं कर रहे हैं वह इस सर्वे में काम नहीं करेगा. क्या हमारे स्थान पर किसी नॉएडा वर्कशॉप वाले को ही जोड़ा गया? (कोई जवाब नहीं आपके पास क्योंकि आपकी पॉलिसी ही लाजवाब है.)

11- कहिये, इतना पर्याप्त है या और गिनाएं आपकी पॉलिसी की उपलब्धियाँ क्योंकि हम तो काफी समय से आप लोगों के लिए काम कर रहे हैं (साथ काम नहीं कर रहे). आप लोगों को तो ख़ुशी होनी चाहिए थी कि आप लोगों के साथ पुरानी टीम है, (सिंह साहब, क्या कभी आपने अपने स्थान पर किसी फ्रेशर की बात सोची या आप ही सन 60 में सर्वे कर रहे थे और अब ‘मात्र’ आप ही वर्कशॉप में प्रश्नावली पर चर्चा कर रहे हैं. हमेशा खुद को ही फ्रेशर बनाते रहेंगे?) जो अपने अनुभवों से आपके डाटा को और अधिक सत्य के पास ले जा रही है. (क्या इसमें भी कुछ खतरा है आपकी प्रतिष्ठा को? शायद..!!)

12- डाटा की सत्यता की बात शायद आप लोग करते हैं (परिणाम की सत्यता तो पहले से आपके कंप्यूटर में फीड है) किन्तु चाहते नहीं हैं क्योंकि इससे असली सत्यता ज़ाहिर हो जाएगी. यही कारण है कि प्रश्नावली के प्रश्नों का रूप किस कदर उलझाऊ और क्लिष्ट होता है जो पढ़े-लिखे लोगों की समझ में तो आता नहीं (आपकी समझ में आता है? नहीं न..!!) अनपढ़ गाँव की समझ में क्या आता होगा? अब आप इसी क्लिष्टता को लेकर लोकतंत्र और सुरक्षा पर चर्चा कर रहे हैं. प्रश्नों के सरल रूप में तो मुंहफट भोला ग्रामीण सही बात कहकर आपके परिणामों में उथल-पुथल पैदा भी कर सकता है. (क्लिष्ट सवालों में ऐसा डर आपको नहीं है.)

13- प्रश्नावली पर हम चर्चा बाद में करेंगे, उस पर भी बहुत कुछ है कहने को. (वैसे श्री वी०बी० सिंह साहब हमारे द्वारा इसके भुक्तभोगी हैं क्योंकि हम तो भोजनावकाश और टी ब्रेक में भी उनको नहीं छोड़ते थे) अभी पॉलिसी पर ही बात हो तो अच्छा है, क्यों ठीक है न?

14- आप लोग आइडेंटिटी कार्ड पर से investigator, researcher शब्द अगली बार हटवा दीजियेगा क्योंकि investigator वही होता है जो कुछ investigate करे, कुछ खोज सके. आपकी प्रश्नावली और एक संकुचित दायरे में कोई व्यक्ति कुछ खोज नहीं कर सकता है तो investigator या researcher का कोई तात्पर्य ही नहीं. वह तो आपके लिए डाटा मात्र एकत्र करता है तो वह हुआ डाटा कलेक्टर. तो आगे से प्रश्नावली, परिचय-पत्र पर शोधार्थी, investigator, researcher के स्थान पर डाटा collector, आँकड़ा संग्राहक जैसे शब्द छपे हों तो व्यक्ति को अपनी ‘असली औकात’ पता रहेगी. (हमारी तरह किसी टीम का researcher होने के मुगालते में, धोखे में नहीं रहेगा.)

15- पॉलिसी को लेकर एक बात अब आपके सीएसडीएस नई दिल्ली के किसी सदस्य की जानकारी के अनुसार कि समूचे देश का व्यक्ति पेन्सिल से उत्तरों पर गोले बनाता है पर दिल्ली टीम के लड़के पेन से गोले बनाते हैं या निशान (कुछ भी) लगाते हैं. यह किस पॉलिसी के तहत है? इसके अलावा जब आप वर्कशॉप में किसी  की बात को अहमियत नहीं देते तो वर्कशॉप की आवश्यकता क्या है? (कहीं यह भी फंडिंग एजेंसी के धन को खपाने का एक रास्ता तो नहीं?)

16- अंतिम किन्तु अंत यहाँ भी नहीं कि आप लोग जिस मानसिकता के तहत कार्य करते हैं वहां डाटा कुछ भी हो पर परिणाम वही होगा जो आप लोग चाहते हैं. आपकी फंडिंग एजेंसी चाहती है. इसके पीछे का कारण ये है कि शिवसेना और भाजपा के लोग ‘जय श्री राम’ बोलकर दंगा कर सकते हैं, हुल्लड़ करवा सकते हैं किन्तु आपके मुस्लिम भाई (कथित अल्पसंख्यक) अल्लाहो-अकबर बोलकर शांति का पैगाम ही लाते हैं. मात्र एक-दो दिनों के कथित विरोध के बाद जनसँख्या के आँकड़ों को सरकार बदल सकती है तो किसी प्राइवेट सर्वे संस्था (आपकी भी) इतनी हिम्मत नहीं कि सही रुख (लाभकारी रुख) के विरुद्ध चल सकें.

कहने, बताने को बहुत कुछ है किन्तु एकबार में ही कह दिया तो आप लोगों का हाजमा ख़राब हो जायेगा क्योंकि आप लोगों की पाचन क्षमता अच्छी नहीं है (उदाहरण तो हम देख ही चुके हैं). आगे आने वाला समय हम और आपको पुनः मिलवायेगा, यह हमारा विश्वास है. रही बात आपके re-check करवाने की तो स्टेटिस्टिक्स के विद्यार्थी, अनेक सर्वे कर चुके एक व्यक्ति और पत्रकारिता से जुड़े सामान्य जागरूक नागरिक का ‘उद्घोष’ कहें, ‘चैलेन्ज’ कहें कि किसी भी स्थिति में इस तरह की प्रश्नावलियों के सवालों को re-check कोई भी नहीं कर सकता है (भाषा शैली सरल अधिक जो है). और respondent और उसके back ground data से सम्बंधित सवाल द्वितीयक आँकड़ों की श्रेणी में आते हैं (लिंग, शिक्षा, व्यवसाय को छोड़कर) और द्वितीयक आँकड़ों का गलत होना सांख्यिकी के अनुसार भारी गलती नहीं है. (वैसे यह तो आप भी जानते होंगे) फिर आप लोग भी क्या re-check करेंगे?

आप लोगों की समय की कमी के बाद भी इतना सब लिख दिया. आगे से समय निकाल कर रखियेगा क्योंकि अभी आपको और सारे पत्रों का सामना करना होगा. वैसे आप तो जवाब देंगे नहीं क्योंकि हमें निकालने की ‘हिम्मत’ तो सीएसडीएस टीम ने कर ली पर लिखित में कोई सूचना प्रेषित करने की ‘ताकत’ न जुटा सके. यदि अब ताकत आ जाये तो पत्र अवश्य डालियेगा क्योंकि आगे के लिए भी कुछ न कुछ प्राप्त होता रहेगा. वैसे कहा भी है-

“रिश्ते छूटें मगर दिल नहीं तोड़ा करते”

अगले एक और धमाकेदार पत्र की घोषणा के साथ सीएसडीएस एशिया बैरोमीटर तय करती (आँकड़े बटोरती कामगार मजदूर की टोली) टीम का बेदखल सदस्य-