अजन्मी बेटियों
के लिए कुछ करने का संकल्प लेकर जब काम करना शुरू किया तो इसका एहसास था कि परेशानी
आएगी पर प्रशासनिक स्तर पर ही सहयोग नहीं मिलेगा, यह कतई नहीं सोचा था. विशुद्ध समाजसेवा के रूप में किये जा रहे
इस काम में स्वयं को सुरक्षित भी रखना था. यह तब समझ आया जबकि जालौन में संचालित एक
नर्सिंग होम का विज्ञापन उरई में लगा देखा. नियमानुसार किसी भी तरह से अल्ट्रासाउंड
के द्वारा भ्रूण लिंग जाँच का विज्ञापन भी नहीं किया जा सकता है.
1998-99 में जिस समय यह काम
शुरू किया उस समय बहुतायत लोगों को नियमों की जानकारी नहीं थी. इस अनभिज्ञता का लाभ
उठाकर सिर्फ बेटों की चाह रखने वाले दम्पत्तियों को विज्ञापनों के द्वारा आकर्षित करने
का कार्य किया जा रहा था. इसी का लाभ उस नर्सिंग होम की संचालक ने उठाया, जो स्वयं चिकित्सक थी. एक छोटी सी होर्डिंग जालौन रोड पर उस गली के मोड़ पर
लगी दिखी, जिस गली में एक महिला चिकित्सक का क्लीनिक था. उस होर्डिंग
को खुद उतारकर उसके बारे में तत्कालीन मुख्य चिकित्साधिकारी को इसकी सूचना दी. बाद
में उरई में ऐसे विज्ञापन कई जगह लगे देखे गए. कई दिन की मशक्कत के बाद उन विज्ञापन
वाली होर्डिंग्स को हटवाया और उनकी शिकायत सीएमओ को करने के साथ-साथ मीडिया को भी कर
दी.
हमारे द्वारा की गई इस कार्यवाही को कहाँ से, किसने लीक किया
ये तो पता नहीं चला मगर नर्सिंग होम की संचालक चिकित्सक द्वारा हमारे खिलाफ एफआईआर
करवाने की, हमको जेल भिजवाने की धमकी का पता चला. आश्चर्य हुआ
कि चिकित्सक होने के बाद भी सम्बंधित नर्सिंग होम की संचालिका को नियमों की जानकारी
नहीं थी. वे विज्ञापन सम्बन्धी होर्डिंग हटाने को हमारा अपराध समझ धमकी देने में लगी
थीं. सीएमओ कार्यालय के द्वारा ही जब उनको नियमों का संज्ञान करवाया गया तो वे उसी
रफ़्तार से शांति धारण कर गईं, जिस रफ़्तार से धमकी दी थी.
इस घटना के बाद
और भी कई घटनाएँ सामने आईं, जिनमें कई बार लड़ाई-झगड़े जैसी स्थिति बनी. कुछ समय बाद जानकारी
मिली कि कानपुर की तरफ से एक मारुति वैन कालपी क्षेत्र में आती है. जिसमें मोबाइल अल्ट्रासाउंड
मशीन के द्वारा गर्भवती महिलाओं की जाँच की जाती है. बेटी न चाहने वाले दंपत्ति कानपुर
जाकर भ्रूण हत्या करवा आते हैं. इस पर भी कई बार सीएमओ कार्यालय में लिखकर दिया. कई
बार नियमित होने वाली पीएनडीटी समिति की बैठक में भी इस मुद्दे को उठाया पर हर बार
हमें ही उस मारुति वैन को पकड़ने के लिए कहकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता. बहुत ज्यादा
दबाव बनाये जाने पर समिति एक निर्णय सर्वसम्मति से सुना देती कि जाँच करने पर पाया
गया कि कोई वैन इस तरह का कृत्य करने जनपद में नहीं आती है.
इसी तरह कालपी में
ही राजेश चिकित्सालय के नाम से लिखी वाल पेंटिंग का सबूत देने के बाद भी प्रशासन की
तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई. उस विज्ञापन में स्पष्ट रूप से लिखा था कि वहां सप्ताह
के दो दिनों में अल्ट्रासाउंड की सुविधा उपलब्ध है. इसके उलट सीएमओ कार्यालय में पंजीकृत
अल्ट्रासाउंड सेंटर्स की सूची में राजेश चिकित्सालय का कहीं नाम भी नहीं था. नियमानुसार
राजेश चिकित्सालय के संचालक पर ऐसा लिखवाने के लिए ही कार्यवाही की जानी चाहिए थी मगर
कहीं कुछ न हुआ. ऐसा तब हुआ जबकि जिला प्रशासन को भी एक कार्यशाला में इस बारे में
सूचित किया गया. किसी भी तरह की सहायता न मिलने पर राजेश चिकित्सालय के दो जगह लिखे
विज्ञापनों को खुद हमने जाकर मिटवाया.
एक बार तो लड़ाई
की स्थिति बन गई थी. जालौन-हमीरपुर की सीमा पर कदौरा में एक पान की दुकान के ऊपर एक
बोर्ड लगे होने की सूचना मिली. उस बोर्ड में अल्ट्रासाउंड करवाएं के अलावा कुछ
भी नहीं लिखा हुआ था. न किसी डॉक्टर का नाम, न किसी नर्सिंग होम का नाम, न किसी जगह का
नाम, न कोई पता, न कोई फोन नंबर. यहाँ थोड़ी
जल्दबाजी या कहें कि हमारे एक स्थानीय परिचित ने हड़बड़ी कर दी. हमने अपने वहाँ के एक
परिचित से उस होर्डिंग की सत्यता जाँचने को कहा साथ ही समझाया कि वे खुद मरीज की तरफ
बर्ताव करते हुए उस पान वाले से सम्बंधित लोगों की जानकारी एकत्र करने की कोशिश करें.
वे महाशय मामले की गंभीरता को समझे बिना अति-उत्साह में उस जगह पहुँचे. उनका अति-उत्साह
वहाँ जानकारी तो एकत्रित न कर सका बल्कि झगड़े का कारण बन बैठा. झगड़े का पता चलते ही
हम अपने कुछ मित्रों सहित आनन-फानन वहाँ पहुँचे. स्थानीय पुलिस को मामले की गंभीरता
समझाने, नियमों की जानकारी देने पर बात आसानी से निपट गई किन्तु
एक बड़ा सुराग हाथ आते-आते रह गया. यदि उस दिन झगड़ा न हुआ होता तो संभवतः अजन्मी बेटियों
को मारने वाले गैंग का, उनके एजेंट का, मोबाइल वैन का, मोबाइल अल्ट्रासाउंड मशीन का भंडाफोड़
हो गया होता.
तमाम तरह की परेशानियों
के बीच काम आज भी चल रहा है. अब सरकार द्वारा इस विषय में रुचि दिखाए जाने से बहुतायत
लोगों द्वारा इस ओर कार्य किया जाने लगा है. प्रशासन भी अब नियमित रूप से कार्य करने
लगा है. इसके साथ ही तमाम छोटे, बड़े एनजीओ, कॉलेज, स्कूल, कार्यालय, कारखाने आदि तक
अपने आपको निगाह में लाने के लिए अब इस दिशा में कार्य कर रहे हैं. सरकार के सक्रिय
होने के अलावा सेलिब्रिटी के सक्रिय होने के कारण भी लोगों में इस विषय के प्रति जागरूकता
आई है. अच्छा है बेटियों को तमाम परेशानियों के बाद भी जन्म लेने का अवसर मिलने लगा
है. इसके बाद भी अभी और जागरूकता की आवश्यकता है. अभी और सजगता की जरूरत है. आखिर जन्म
लेने के बाद भी बेटियाँ कहाँ सुरक्षित रह पा रही हैं?
पहले जहाँ
बेटियों को जन्म लेने देने के लिए लोगों को जागरूक करना था वहीं अब बेटियों की सुरक्षा
के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. बेटी को प्यार, बहू को अधिकार, आज बेटी को मारोगे, कल बहू कहाँ से लाओगे जैसे नारों के साथ बिटोली
अभियान के द्वारा अपेक्षा की जा सकती है कि आने वाले समय में बेटियाँ सुरक्षित रह सकेंगी.