Sunday 25 May 2014

प्रेम में प्रेम भरे सवाल

बात आत्मकथा की हो और वो भी इतनी जल्दी तो बहुत से लोगों में किसी और विषय की अपेक्षा यह जानने की इच्छा होती है कि क्या प्रेम कहानी/कहानियों के बारे में लिखा जायेगालोगों को विश्वास रहता है कि हम जैसे लोगों की एक प्रेम कहानी नहींकई प्रेम कहानियाँ होंगी. जिसे-जिसे भी पता चला कि हम आत्मकथा लिख रहे हैं तो उनमें से बहुतों ने एक-दो सवाल निश्चित किये. अपनी प्रेम कहानियाँ लिखोगेकिस-किस के बारे में लिखोगेसमझ नहीं आता कि यहाँ तो लोगों की एक प्रेम कहानी में ही लाखों सवाल खड़े हो जाते हैं और लोग हैं कि हमसे अपेक्षा कर रहे प्रेम कहानियों की. लोगों को आखिर इतना विश्वास कैसे कि हमारी कोई प्रेम कहानी होगी ही या फिर प्रेम कहानियाँ होंगी हीक्या सिर्फ चेहरे के आधार परफिर विचार किया लोगों की बातों पर तो लगा कि क्या वाकई सभी लोगों को कभी न कभीकिसी न किसी से प्यार होता होगाक्या सभी ने अपने जीवन में किसी न किसी से प्रेम किया होगाजी हाँवही प्रेमवही प्यार जो आप लोग समझ रहे हैं. विषमलिंगियों वाला प्रेमप्रेमी-प्रेमिकाओं वाला प्रेमसाथ जीने-मरने की कसमें खाने वाला प्रेमदिलों की धड़कनें बढ़ाने वाला प्रेमदिन-रात जगाने वाला प्रेम. 

फ़िलहाल औरों की बात औरों पर छोड़ देते हैं पर कुछ बिन्दु तो चर्चा के लिए उछाल ही देते हैंसबके बीच. क्या किसी व्यक्ति को किसी एक व्यक्ति से प्रेम हो जाने के बाद किसी दूसरे से प्यार नहीं होताक्या प्रेमी-प्रेमिका के आपस में विवाह करने के बाद उन्हें किसी और से प्यार नहीं होताक्या एक से अधिक लोगों से प्यार करना असामाजिक हैक्या प्यार की परिणति विवाह होना चाहिएयदि विवाह न हो सके तो क्या रो-रोकर मर जाना चाहिएआखिर प्यार का रूप-स्वरूप क्या है?

वैसे इतना यकीन है कि इतने सारे प्रश्नवाचक चिन्ह देखकर आप लोगों को हमारी प्रेम कहानी/कहानियाँ सुनने-पढ़ने की इच्छा तो मरने सी लगी होगी. ये सोच कर कि पता नहीं आने वाले किस्सों में और कितने प्रश्नवाचक हों. खैरवैसे सही बात यह है कि हमने भी प्रेम कियाखूब कियाजी भर कर किया. बचपन से लेकर अभी तक प्रेम ही प्रेमप्यार ही प्यार. जी हाँजी हाँलड़कियों से ही किया. अब आप कहोगे कि इतना सारा प्यारइतनी सारी लड़कियों से प्यारतो इसका जवाब भी हाँ ही है हमारी तरफ से क्योंकि हमारी नजर में प्रेम वो पवित्र अवधारणा है जो तन से नहीं मन से संचालित होती है. हमारे लिए प्यार शारीरिकता पर नहीं वरन आत्मिकता की आधारभूमि का निर्माण करता है. हमारे लिए प्यार का अर्थ विश्वास हैअविश्वास नहीं. हमारे लिए प्रेम पहली नजर का नहीं वरन गंभीरता का भावबोध है. हमारी नजर में प्रेम का उत्कर्ष वैवाहिक बंधन नहीं वरन सम्बन्ध निर्वहन की जिम्मेवारी है.

अक्सर ऐसी अवधारणा ने बहुत सी नज़रों में हमें अपराधी बनाया है. बहुतेरे लोगों के लिए आज भी प्रेम एक ऐसा विषय है जो बस एक से होकर समाप्त हो जाता है. यह समाप्ति या तो उनके मिलन पर होती है अथवा उनके बिछड़ने पर. संभवतः यह प्रेम का एकाकी स्वरूप है. आखिर प्रेम को किसी एक बिंदु पर ही कैसे बांधा जा सकता हैआखिर कैसे संभव है कि प्रेम से ओतप्रोत एक दिल प्रेम की बारिश न करेएक के अलावा किसी और को प्रेम-रस से सराबोर न करेअसल में समाज में बहुतेरे लोगों में अभी भी प्रेमसौन्दर्यआकर्षण जैसे शब्दों के वास्तविक सन्दर्भ ही ज्ञात नहीं हैं. उनके लिए प्रेम पहली नजर से शुरू होकर देह के मिलन पर ठहर जाने की प्रक्रिया मात्र है. ऐसे लोगों के लिए प्रेम एकाकी भाव को उत्पन्न करता है. यहाँ समझना होगा कि प्रेम और विश्वास का अपना अंतर्संबंध है. प्रेम के साथ विश्वास का होना प्रेम की गंभीरता कोउसके एहसास को और विराट बना देता है. आखिर इसी देश में राधा-कृष्ण का मीरा-कृष्ण का प्रेम ऐसे ही पावन-पूज्य नहीं है. 

अच्छाये बहुत दार्शनिक सा नहीं लगने लगाऐसा लग रहा होगा आपमें से बहुत से लोगों को क्योंकि आज प्रेम क्षणिक आवेग का नाम बनता जा रहा है. आज प्यार का अर्थ पहली नजर से लगाया जाने लगा है. आज प्यार को दैहिक आकर्षण के आसपास केन्द्रित कर दिया गया है. प्रेम की पावन-पूज्य अवधारणा के आधार पर हमारे प्रेम के किस्से भी हैंसिर्फ दर्शन नहीं है. मगर उसके लिए इंतजार करिए. समूची प्रेम कहानियों के लिए एक संकलन अलग से तैयार करना होगा. यहाँ अभी तो इक्का-दुक्काइखरी-बिखरी ही. हाँउन लड़कियों को डरनेघबराने की जरूरत नहीं जिनको हमसे प्यार हुआ या जिनसे हमें प्रेम हुआ या फिर हम-उनको जिन्हें आपस में प्यार हुआ. आखिर कलह से बचने-बचाने का ही तो नाम है कुछ सच्ची कुछ झूठी.



Friday 23 May 2014

लिख ही दी जाए कुछ सच्ची कुछ झूठी

कुछ अलग हट के लिखने की सोच रहे थे और कई-कई मुद्दों पर दिमाग जाने के बाद भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखा जाये. क्या-क्या और किस-किस पर नहीं लिखा अपने ब्लॉग की तमाम सारी पोस्ट में. अपने ब्लॉग के द्वारा विभिन्न मुद्दों पर लिखाबहुत से लोगों का स्नेह मिलाबहुत से लोगों का कोप भी सहाकुछ लोग जुड़ते चले गएकुछ लोग जुड़-जुड़ कर भी दूर होते गए. ऐसे में लगा कि कुछ अपनी इस यात्रा के बारे में ही लिखाबताया जाए. इसमें भी मन नहीं भरा क्योंकि इस बारे में पहले भी लिख चुके हैं. फिर लगा कि इस पोस्ट में विशुद्ध अपने बारे में ही कुछ लिखा जाये क्योंकि अपने ऊपर ही कुछ नहीं लिखा अभी तक. (दूसरा तो कोई वैसे ही हम पर लिखने से रहा)  इधर बहुत समय से खुद पर लिखने के लिए कुछ सोचा भी जा रहा हैवो भी आत्मकथा के रूप में. 

जिंदगी के चार दशक कम नहीं होते हैं अपने बारे में कुछ लिखने के लिए और यही सोचकर आत्मकथा लिखना शुरू भी कर दिया है. हाँआत्मकथा लिखना है तो नाम भी रखना पड़ेगासो कुछ सच्ची कुछ झूठी नाम भी सोच लिया है. कुछ मित्रों को इस नाम पर कुछ झूठी’ शब्द पर आपत्ति हुई, हो सकता है कि उनकी आपत्ति सही हो किन्तु हमारी दृष्टि में आत्मकथा खुद की कहानी लिखने से ज्यादा खुद के द्वारा जीवन के समझने कोलोगों को देखने-परखने कोअपने प्रति लोगों के नजरिये कोअपने साथ गुजरे तमाम पलों के अनुभवों को समेटने-सहेजने का माध्यम मात्र है. इसमें सच तो सच के रूप में है ही किन्तु कुछ ऐसे सचजिसके सामने आने से दूसरों की सामाजिकतादूसरों के व्यक्तिगत जीवनदूसरों की गोपनीयता पर किसी तरह का संकट आता होकिसी की मर्यादाकिसी का सम्मानकिसी के आदर्शों को ठेस पहुँचती होको कुछ कल्पनाशीलता का आवरण ओढ़ा कर पेश किया जायेगा. हमारे लिए यही कुछ झूठी’ साथ रहेगा किन्तु सत्य के साथ.

दरअसल हमने अपने जीवन में बहुत कुछ देखाबहुत कुछ सहा है. बहुत कुछ अनुभव इस तरह के हैं जिन्होंने समय से पूर्व हमें बड़ा बना दिया. सुख की बारिश को देखा है तो दुखों की तपती धूप भी सही हैगैरों का साथ पाया है तो अपनों को बेगाने होते भी देखा हैसमाज के कठोर धरातल पर खुद को खड़ा किया है तो ठोकर खाकर खुद को संभाला भी है. बनते-बिगड़ते कार्यों सेखट्टे-मीठे अनुभवों सेबचपन-युवावस्था सेघर-बाहर सेदूसरों से-अपने आपसेसुख-दुःख से बहुत-बहुत कुछ सीखा है. हताशानिराशानकारात्मकता को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया है. जीवन को खुशनुमा बनाये रखे का हमने एक मूलमंत्र बना रखा है कि भूतकाल से सीखकर वर्तमान को सुधारोभविष्य कैसा होगा ये किसी को नहीं पता है.’ और यही कारण है कि हँसना, खूब खुलकर हँसना हमारी आदत में हैहर फ़िक्र को धुंए में उड़ाना हमारी फितरत में है (सिगरेट वाला धुआँ नहीं)मौज-मस्तीयारी-दोस्ती निभाना हमारी दिनचर्या में हैअपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना हमारी जीवनशैली में हैबेधड़क होकरनिडर होकरबेख़ौफ़ होकर जीना हमारी विरासत में है. और ये उसी स्थिति में संभव है जबकि आपके साथ आपके अपने तो हों हीगैर भी आपके अपनों जैसे लगते हों और यही हमारी सम्पदा हैहमारी पूँजी है. हमारा पूरा परिवार तो हमारे साथ है हीहमारे मित्रहमारे सहयोगी भी हमारे अपने हैं और इस पूँजी के दम पर ही कभी हसरत थी आसमां छूने कीअब तमन्ना है आसमां के पार जाने की को अपना दर्शन बना रखा है.