Friday 23 May 2014

लिख ही दी जाए कुछ सच्ची कुछ झूठी

कुछ अलग हट के लिखने की सोच रहे थे और कई-कई मुद्दों पर दिमाग जाने के बाद भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखा जाये. क्या-क्या और किस-किस पर नहीं लिखा अपने ब्लॉग की तमाम सारी पोस्ट में. अपने ब्लॉग के द्वारा विभिन्न मुद्दों पर लिखाबहुत से लोगों का स्नेह मिलाबहुत से लोगों का कोप भी सहाकुछ लोग जुड़ते चले गएकुछ लोग जुड़-जुड़ कर भी दूर होते गए. ऐसे में लगा कि कुछ अपनी इस यात्रा के बारे में ही लिखाबताया जाए. इसमें भी मन नहीं भरा क्योंकि इस बारे में पहले भी लिख चुके हैं. फिर लगा कि इस पोस्ट में विशुद्ध अपने बारे में ही कुछ लिखा जाये क्योंकि अपने ऊपर ही कुछ नहीं लिखा अभी तक. (दूसरा तो कोई वैसे ही हम पर लिखने से रहा)  इधर बहुत समय से खुद पर लिखने के लिए कुछ सोचा भी जा रहा हैवो भी आत्मकथा के रूप में. 

जिंदगी के चार दशक कम नहीं होते हैं अपने बारे में कुछ लिखने के लिए और यही सोचकर आत्मकथा लिखना शुरू भी कर दिया है. हाँआत्मकथा लिखना है तो नाम भी रखना पड़ेगासो कुछ सच्ची कुछ झूठी नाम भी सोच लिया है. कुछ मित्रों को इस नाम पर कुछ झूठी’ शब्द पर आपत्ति हुई, हो सकता है कि उनकी आपत्ति सही हो किन्तु हमारी दृष्टि में आत्मकथा खुद की कहानी लिखने से ज्यादा खुद के द्वारा जीवन के समझने कोलोगों को देखने-परखने कोअपने प्रति लोगों के नजरिये कोअपने साथ गुजरे तमाम पलों के अनुभवों को समेटने-सहेजने का माध्यम मात्र है. इसमें सच तो सच के रूप में है ही किन्तु कुछ ऐसे सचजिसके सामने आने से दूसरों की सामाजिकतादूसरों के व्यक्तिगत जीवनदूसरों की गोपनीयता पर किसी तरह का संकट आता होकिसी की मर्यादाकिसी का सम्मानकिसी के आदर्शों को ठेस पहुँचती होको कुछ कल्पनाशीलता का आवरण ओढ़ा कर पेश किया जायेगा. हमारे लिए यही कुछ झूठी’ साथ रहेगा किन्तु सत्य के साथ.

दरअसल हमने अपने जीवन में बहुत कुछ देखाबहुत कुछ सहा है. बहुत कुछ अनुभव इस तरह के हैं जिन्होंने समय से पूर्व हमें बड़ा बना दिया. सुख की बारिश को देखा है तो दुखों की तपती धूप भी सही हैगैरों का साथ पाया है तो अपनों को बेगाने होते भी देखा हैसमाज के कठोर धरातल पर खुद को खड़ा किया है तो ठोकर खाकर खुद को संभाला भी है. बनते-बिगड़ते कार्यों सेखट्टे-मीठे अनुभवों सेबचपन-युवावस्था सेघर-बाहर सेदूसरों से-अपने आपसेसुख-दुःख से बहुत-बहुत कुछ सीखा है. हताशानिराशानकारात्मकता को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया है. जीवन को खुशनुमा बनाये रखे का हमने एक मूलमंत्र बना रखा है कि भूतकाल से सीखकर वर्तमान को सुधारोभविष्य कैसा होगा ये किसी को नहीं पता है.’ और यही कारण है कि हँसना, खूब खुलकर हँसना हमारी आदत में हैहर फ़िक्र को धुंए में उड़ाना हमारी फितरत में है (सिगरेट वाला धुआँ नहीं)मौज-मस्तीयारी-दोस्ती निभाना हमारी दिनचर्या में हैअपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना हमारी जीवनशैली में हैबेधड़क होकरनिडर होकरबेख़ौफ़ होकर जीना हमारी विरासत में है. और ये उसी स्थिति में संभव है जबकि आपके साथ आपके अपने तो हों हीगैर भी आपके अपनों जैसे लगते हों और यही हमारी सम्पदा हैहमारी पूँजी है. हमारा पूरा परिवार तो हमारे साथ है हीहमारे मित्रहमारे सहयोगी भी हमारे अपने हैं और इस पूँजी के दम पर ही कभी हसरत थी आसमां छूने कीअब तमन्ना है आसमां के पार जाने की को अपना दर्शन बना रखा है.