बात आत्मकथा की हो और वो भी इतनी जल्दी तो बहुत से लोगों में किसी और विषय की अपेक्षा यह जानने की इच्छा होती है कि क्या प्रेम कहानी/कहानियों के बारे में लिखा जायेगा? लोगों को विश्वास रहता है कि हम जैसे लोगों की एक प्रेम कहानी नहीं, कई प्रेम कहानियाँ होंगी. जिसे-जिसे भी पता चला कि हम आत्मकथा लिख रहे हैं तो उनमें से बहुतों ने एक-दो सवाल निश्चित किये. अपनी प्रेम कहानियाँ लिखोगे? किस-किस के बारे में लिखोगे? समझ नहीं आता कि यहाँ तो लोगों की एक प्रेम कहानी में ही लाखों सवाल खड़े हो जाते हैं और लोग हैं कि हमसे अपेक्षा कर रहे प्रेम कहानियों की. लोगों को आखिर इतना विश्वास कैसे कि हमारी कोई प्रेम कहानी होगी ही या फिर प्रेम कहानियाँ होंगी ही? क्या सिर्फ चेहरे के आधार पर? फिर विचार किया लोगों की बातों पर तो लगा कि क्या वाकई सभी लोगों को कभी न कभी, किसी न किसी से प्यार होता होगा? क्या सभी ने अपने जीवन में किसी न किसी से प्रेम किया होगा? जी हाँ, वही प्रेम, वही प्यार जो आप लोग समझ रहे हैं. विषमलिंगियों वाला प्रेम, प्रेमी-प्रेमिकाओं वाला प्रेम, साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाला प्रेम, दिलों की धड़कनें बढ़ाने वाला प्रेम, दिन-रात जगाने वाला प्रेम.
फ़िलहाल औरों की बात औरों पर छोड़ देते हैं पर कुछ बिन्दु तो चर्चा के लिए उछाल ही देते हैं, सबके बीच. क्या किसी व्यक्ति को किसी एक व्यक्ति से प्रेम हो जाने के बाद किसी दूसरे से प्यार नहीं होता? क्या प्रेमी-प्रेमिका के आपस में विवाह करने के बाद उन्हें किसी और से प्यार नहीं होता? क्या एक से अधिक लोगों से प्यार करना असामाजिक है? क्या प्यार की परिणति विवाह होना चाहिए? यदि विवाह न हो सके तो क्या रो-रोकर मर जाना चाहिए? आखिर प्यार का रूप-स्वरूप क्या है?
वैसे इतना यकीन है कि इतने सारे प्रश्नवाचक चिन्ह देखकर आप लोगों को हमारी प्रेम कहानी/कहानियाँ सुनने-पढ़ने की इच्छा तो मरने सी लगी होगी. ये सोच कर कि पता नहीं आने वाले किस्सों में और कितने प्रश्नवाचक हों. खैर, वैसे सही बात यह है कि हमने भी प्रेम किया, खूब किया, जी भर कर किया. बचपन से लेकर अभी तक प्रेम ही प्रेम, प्यार ही प्यार. जी हाँ, जी हाँ, लड़कियों से ही किया. अब आप कहोगे कि इतना सारा प्यार? इतनी सारी लड़कियों से प्यार? तो इसका जवाब भी हाँ ही है हमारी तरफ से क्योंकि हमारी नजर में प्रेम वो पवित्र अवधारणा है जो तन से नहीं मन से संचालित होती है. हमारे लिए प्यार शारीरिकता पर नहीं वरन आत्मिकता की आधारभूमि का निर्माण करता है. हमारे लिए प्यार का अर्थ विश्वास है, अविश्वास नहीं. हमारे लिए प्रेम पहली नजर का नहीं वरन गंभीरता का भावबोध है. हमारी नजर में प्रेम का उत्कर्ष वैवाहिक बंधन नहीं वरन सम्बन्ध निर्वहन की जिम्मेवारी है.
अक्सर ऐसी अवधारणा ने बहुत सी नज़रों में हमें अपराधी बनाया है. बहुतेरे लोगों के लिए आज भी प्रेम एक ऐसा विषय है जो बस एक से होकर समाप्त हो जाता है. यह समाप्ति या तो उनके मिलन पर होती है अथवा उनके बिछड़ने पर. संभवतः यह प्रेम का एकाकी स्वरूप है. आखिर प्रेम को किसी एक बिंदु पर ही कैसे बांधा जा सकता है? आखिर कैसे संभव है कि प्रेम से ओतप्रोत एक दिल प्रेम की बारिश न करे, एक के अलावा किसी और को प्रेम-रस से सराबोर न करे? असल में समाज में बहुतेरे लोगों में अभी भी प्रेम, सौन्दर्य, आकर्षण जैसे शब्दों के वास्तविक सन्दर्भ ही ज्ञात नहीं हैं. उनके लिए प्रेम पहली नजर से शुरू होकर देह के मिलन पर ठहर जाने की प्रक्रिया मात्र है. ऐसे लोगों के लिए प्रेम एकाकी भाव को उत्पन्न करता है. यहाँ समझना होगा कि प्रेम और विश्वास का अपना अंतर्संबंध है. प्रेम के साथ विश्वास का होना प्रेम की गंभीरता को, उसके एहसास को और विराट बना देता है. आखिर इसी देश में राधा-कृष्ण का मीरा-कृष्ण का प्रेम ऐसे ही पावन-पूज्य नहीं है.
अच्छा, ये बहुत दार्शनिक सा नहीं लगने लगा? ऐसा लग रहा होगा आपमें से बहुत से लोगों को क्योंकि आज प्रेम क्षणिक आवेग का नाम बनता जा रहा है. आज प्यार का अर्थ पहली नजर से लगाया जाने लगा है. आज प्यार को दैहिक आकर्षण के आसपास केन्द्रित कर दिया गया है. प्रेम की पावन-पूज्य अवधारणा के आधार पर हमारे प्रेम के किस्से भी हैं, सिर्फ दर्शन नहीं है. मगर उसके लिए इंतजार करिए. समूची प्रेम कहानियों के लिए एक संकलन अलग से तैयार करना होगा. यहाँ अभी तो इक्का-दुक्का, इखरी-बिखरी ही. हाँ, उन लड़कियों को डरने, घबराने की जरूरत नहीं जिनको हमसे प्यार हुआ या जिनसे हमें प्रेम हुआ या फिर हम-उनको जिन्हें आपस में प्यार हुआ. आखिर कलह से बचने-बचाने का ही तो नाम है कुछ सच्ची कुछ झूठी.
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