Wednesday 27 February 2019

छोटी सी मगर बहुत बड़ी ज़िन्दगी


चालीस साल की ज़िन्दगी बहुत बड़ी नहीं कही जाती. इतनी बड़ी भी नहीं होती कि सारा अनुभव मिल सके तो इतनी छोटी भी नहीं होती कि कुछ सीखा भी न जा सके. समाज के बहुतेरे क्षेत्र ऐसे होते हैं जहाँ इस उम्र वालों को, इससे भी अधिक उम्र वालों को युवा कहा जाता है. हमने तो किसी भी समय अपने को उम्रदराज नहीं माना. हमारे साथ के अनेक मित्र आये दिन बातों-बातों में खुद को बुजुर्गियत की तरफ बढ़ना बताने लगते हैं. उनके ऊपर हँसते हुए हम खुद को आज के बीस-बाईस वर्ष के युवाओं से भी अधिक युवा समझते-मानते हैं. युवा होने में उम्र से अधिक दिल का महत्त्व होता है, दिल जवान तो हम भी जवान. 

इतनी उम्र में अन्य दूसरे लोगों का पता नहीं पर हमने अपनी ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा है. लोगों को साथ आते देखा है, लोगों को साथ छोड़ते देखा है. बहुतेरे लोगों से प्रेम मिलते देखा है तो बहुत से लोगों से नफरत भी स्वीकार की है. बहुतों को नंगा होते देखा है, बहुतों को आवरण में देखा है. बहुतों को धोखा देते देखा है, बहुतों को साथ देते देखा है. कई नौजवानों को अपने हाथों जीवन की अधूरी यात्रा करते देखा है तो कई बुजुर्गों को इन्हीं हाथों में अपना जीवन पूरा करते देखा है. इन हाथों ने जाने कितनों की अंतिम यात्रा को अंतिम रूप दिया है तो इन्हीं हाथों ने अपने पिता को भी अग्नि की भेंट चढ़ाया है. न जाने कितना कुछ. बहुत कुछ कहा जाने योग्य, बहुत कुछ न बताये जाने लायक.

अपने इतने वर्षों का लेखा-जोखा सोचने लगते हैं तो लगता है कि जितना पाया है उससे कहीं अधिक खोया है. जीवन के खाते को घाटे में जाते देख कर उत्पन्न होने वाली घबराहट वाली स्थिति में जब जीवन के पन्ने उलटते हैं तो बहुत कुछ ऐसा मिलता है जिससे लगता है कि अपेक्षा से अधिक पाया है. अपना ही रूप कहे जा सकने वाले दोस्तों, परिजनों को पाया है. निपट अजनबियों को अपने पर जबरदस्त विश्वास करते पाया है. इसके बाद भी ऐसा अबूझ सा भी कुछ बना हुआ है कि बहुत से लोगों के दिल में अपना विश्वास जगा न सके हैं. ऐसे लोगों में परिजन, दोस्त, रिश्तेदार, सहयोगी, सोशल मीडिया के मित्र, सामाजिक क्षेत्र, राजनैतिक क्षेत्र, साहित्यिक क्षेत्र, कार्यक्षेत्र आदि के लोग शामिल हैं. कभी उन सभी पर बहुत गुस्सा आया करता था मगर दुनियादारी ने समझाया कि ये उनकी कमी नहीं, हमारी खुद की कमी है. अब लगता भी है कि वाकई कुछ कमी हममें ही है.

बहरहाल, कोई इंसान सम्पूर्ण नहीं होता, कोई अपने में परिपूर्ण नहीं होता. खुद की कमियाँ जानकर खुद को सुधारने का प्रयास है. जिनके अन्दर अपने प्रति विश्वास पैदा न कर सके, उनको अपना बनाने का प्रयास है. जो अपने हैं उन्हें अपने से दूर न होने देने की कोशिश है. सब इसी ज़िन्दगी में करना है क्योंकि ये ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा.

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