Saturday 5 January 2019

बहती आँखें उसे जाते हुए देखती रहीं


मुलाकात जब पहली बार हुई तो न फिल्मों की तरह पहली नजर वाला आकर्षण उभरा, न पहली नजर के प्रेम जैसा कुछ एहसास हुआ. हाँ, एक तरह का आकर्षण उसके प्रति महसूस हुआ था. उससे मिलना अच्छा सा, सुखद सा लगा था. कुछ दिनों की कुछ मुलाकातें जो हँसी-मजाक के साथ ख़तम हो गईं. हम दोनों की अपनी-अपनी राहें थीं, अध्ययन वालीं, सो आगे चल दिए. पढ़ने को, डिग्री लेने को. पर वो कहते हैं न कि दुनिया गोल है, किसी न किसी दिन फिर मिलते हैं. हम दोनों फिर मिले, अबकी कुछ साल बाद मिले.

पहली बार की मुलाकात के समय के मुकाबले अबकी मुलाकात में हम दोनों कुछ परिपक्व भी थे. इस परिपक्वता में भी पहली नजर के आकर्षण जैसा कुछ न हुआ, न इधर, न उधर. इसके बाद भी वही आकर्षण समझ आया जो पहली मुलाकात में लगा था. वैसा ही अच्छा लगने जैसा, वैसा ही सुखद एहसास जागा था जैसा कि पहली मुलाकात में जागा था. इसके बाद मुलाकातें हुई, कई बार हुईं, नियमित न सही मगर जल्दी-जल्दी हुईं. वैचारिकता के अपने-अपने धरातल निर्मित हो चुके थे. सोचने-समझने की मानसिकता भी विकसित हो चुकी थी. क्या सही है, क्या गलत है की दृष्टि विकसित हो चुकी थी.

ऐसा भी नहीं कि सौन्दर्य बोध का अभाव रहा हो. आँखों में चुम्बकीय आकर्षण, चेहरे पर प्राकृतिक मुस्कान, सादगी का प्रतिरूप. इसके बाद भी महज शारीरिक आकर्षण जैसा कुछ नहीं था. इसका कारण यही रहा कि उसे कभी भी देह के मापदंडों पर नहीं आँका. बहरहाल, समय गुजरता रहा, मुलाकातें चलती रहीं मगर ख़ामोशी उसी तरह बनी रही. उस ख़ामोशी के साए में कुछ स्वर गूँजे. कुछ कहने का प्रयास हुआ.

उस शाम उससे पहली बार मिलना तो हो नहीं रहा था. पहले भी कई-कई बार मुलाकात हो चुकी थी. मिलना-जुलना भले नियमित नहीं होता रहा किन्तु होता रहा था. आपस में बातचीत, हँसी-मजाक, छेड़छाड़, गपशप होती रहती थी किन्तु उस शाम की मुलाकात ने दिल को झंकृत कर दिया. समझ नहीं आ रहा था कि ये प्यार है या फिर जब पहली बार मुलाकात हुई थी, तब जो आकर्षण जागा था, वो प्यार था

बेधड़क किसी से भी कुछ भी कह देने की सामर्थ्य कहीं चुकती सी लगने लगी. बहती नदी के धारे संग-संग भावनाएं बन रही थीं, दोस्त की बाँह थामे हिम्मत बटोरने की कोशिश की जा रही थी. अंततः बहती आँखें उसे जाते हुए देखती रहीं और कभी उसका कहा सत्य साबित हुआ कि आँसू सँभाल कर रखिये, किसी दिन हमारे लिए भी बहाने पड़ेंगे.

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