Tuesday 18 December 2018

सोशल मीडिया की उन्मुक्तता


मीडिया के साथ जुड़ाव बचपन से ही रहा है. पिताजी के मित्र दैनिक एलार्म समाचार-पत्र का प्रकाशन उरई से करते थे. उनके साथ पारिवारिक संबंधों के कारण पत्रकारिता को बहुत करीब से देखने का अवसर बचपन से ही मिला है. इसी तरह प्रिंट लाइन में जनपद जालौन में अपनी सबसे अलग स्थान रखने वाले श्री राजाराम गुप्ता जी से भी पारिवारिक सम्बन्ध होने के कारण इस क्षेत्र की बारीकियों को भी बहुत करीब से देखने-समझने का अवसर बचपन से ही मिला. हमारे अभी तक के अभिन्नतम मित्रों में से एक अश्विनी कुमार गुप्ता ‘बबलू’ जो श्री राजाराम गुप्ता जी के नाती हैं, और हम बचपन से अभी तक एक-दूसरे के साये की तरह एक-दूसरे के साथ हैं. 

स्नातक करने के बाद अपने लेखन शौक के कारण खुद भी मीडिया के संपर्क में आये. प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संपर्क हुआ, सम्बन्ध बने. इस मीडिया से संपर्क विस्तार के बाद जब सोशल मीडिया में प्रवेश किया तो पता नहीं था कि उसमें जितनी राहें हैं वे सारी भूलभुलैया की तरह काम करती हैं. जरा सा भटके नहीं कि फिर उसी में खो गए. सोशल मीडिया की राह पर चलना शुरू किया ब्लॉग के माध्यम से जो चलते-चलते कब फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ट्विटर आदि तक पहुँच गया, पता ही नहीं चला.

वैचारिक आदान-प्रदान के लिए सर्वोत्तम मंच समझकर यहाँ अपनी उपस्थिति कुछ ज्यादा ही बना ली. इस उपस्थिति के अपने ही परिणाम निकले. बहुत से लोग बौद्धिक विमर्श में सहायक बने, उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. कुछ लोग सामाजिकता में वृद्धि करते दिखे तो उनसे भी सीखा गया. कुछ लोगों का कार्य पूर्वाग्रह से भरकर सिर्फ वैमनष्यता ही फैलाता दिखा तो कुछ दिन उनसे तर्क-वितर्क की स्थिति के बाद लगा कि ऐसे लोगों से बहस का कोई सार नहीं. सो ऐसे लोगों से किनारा करना ज्यादा उचित समझ आया. और भी तमाम तरह की प्रजातियाँ सोशल मीडिया पर मिलीं.

इन्हीं में से एक प्रजाति ऐसी मिली जिसका काम इनबॉक्स में आकर हाय, हैलो करना, दो-चार बार के बाद उससे भी कई कदम आगे जाकर प्यार का इजहार करना, शारीरिक सम्बन्ध बनाने की चाह व्यक्त करना, न्यूड फोटो भेजना शुरू हो जाता. इस तरह के कृत्य करने के बाद भी इस प्रजाति का दम ये भरना रहता कि हमसे प्रेम करती हैं, दिल की गहराइयों से प्रेम करती हैं, हमारे प्यार में सबकुछ कर गुजर जायेंगी. ऐसे कृत्य में जहाँ कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियाँ शामिल थीं वहीं कई वयस्क महिलाएं भी शामिल रहीं. कुछ का जुड़ना होता पाठ्यक्रम सम्बन्धी चर्चाओं के द्वारा, कुछ का सामाजिक कार्यों में सहयोग की खातिर, कुछ का साहित्यिक क्षेत्र के कारण. दो-चार रोज काम की चर्चाओं, बातचीत के बाद उनका अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया जाता.

ऐसी अनेक प्रोफाइल के लिए सोशल मीडिया पर खुलकर पुरुष-विरोधी अभियान चलाया गया. पुरुषों को खुलकर इसके लिए आरोपी बनाया गया. ये सच हो सकता है कि पुरुष इनबॉक्स में घुसकर बहुतेरी महिलाओं के साथ अशालीन अभिव्यक्ति दर्शाते हों. इसके साथ-साथ यह भी सत्य है कि महिलाओं में भी इस तरह की प्रवृत्ति पाई जाती है. यहाँ बिना किसी दोषारोपण के दोनों पक्षों को समझना होगा कि यौनेच्छा किसी एक व्यक्ति या एक वर्ग के पास नहीं है. किसी के पास कम है तो किसी के पास ज्यादा, मगर इसकी चाह जितनी पुरुष को है, उतनी ही महिला को भी. इसके अलावा सामाजिक बंधनों के बीच पूर्णरूप से स्वतंत्र सोशल मीडिया ने अपनी कामेच्छा को प्रकट करने का आधार प्रदान करवा दिया है. अपने एहसासों को, जज्बातों को दर्शाने का माध्यम प्रदान करवा दिया है. इस निर्बन्धन ने शर्म के बंधन तोड़े हैं, लज्जा के बंधन तोड़े हैं, प्रकटीकरण के द्वार खोले हैं, उन्मुक्तता के द्वार खोले हैं.

तब लगा कि सोशल मीडिया के प्रति लोगों के, विशेष रूप से युवाओं के आकर्षण ने विचारों की अभिव्यक्ति को कितनी स्वतंत्रता दे दी है. विचारों में भी ख़ास तौर से सेक्स सम्बन्धी अभिव्यक्ति को, नग्नता प्रदर्शित करने सम्बन्धी अभिव्यक्ति को. सेक्स की इस उन्मुक्त अभिव्यक्ति के साथ ये सभी लोग, वे चाहे पुरुष हों या स्त्री, किस स्वतंत्रता के पोषक बनेंगे, पता नहीं.

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