घर से कॉलेज, हॉस्टल के लिए वापसी हुई, एक दुःख भरे अध्याय के साथ. बाबा जी के निधन ने जैसे पूरे परिवार को हिलाकर
रख दिया था. समस्त पारिवारिक संस्कारों की समाप्ति के बाद कॉलेज आना हुआ. रेलवे स्टेशन
से बाहर निकले. रास्ते भर दिमाग तमाम सारे फैसले करते हुए हमसे उनकी स्वीकारोक्ति करवाता
जा रहा था. कॉलेज का पहला साल मिश्रित रूप से बीता था. शैक्षणिक अंकों में गिरावट दिखी
तो लड़ाई-झगड़ों के ग्राफ में बढ़ोत्तरी दिख रही थी. कुछ ग्राफ बनाये हुए और कुछ
ग्राफ काल्पनिक.
ग्वालियर में कदम
रखते हुए सोचा कि अब लड़ाई-झगड़ा बंद. किसी से कोई दुर्व्यवहार नहीं. सोचते-विचारते, आगे की योजनायें बनाते चले जा रहे थे कि तभी
कानों में किसी वृद्ध व्यक्ति का कातर स्वर पड़ा. पलटकर देखा तो एक ऑटो वाला एक वृद्ध
से लड़ने में लगा हुआ था. कदम एकबारगी उस तरफ बढ़ने को हुए कि रास्ते भर लिए गए तमाम
निर्णयों में से एक निर्णय ने अपना सिर उठाया कि नहीं, लड़ना नहीं है.
अपने बैग को कंधे
पर लटका, हमें क्या करना है, जो हो रहा
है होने दो, सोचकर टैम्पो पकड़ने की राह चल दिए. मुश्किल से दो-तीन
कदम ही चले होंगे कि ऐसा लगा जैसे वह बूढ़ा व्यक्ति रो रहा है. मन न माना और पलट कर
देखा तो उस ऑटो वाले ने उस वृद्ध के दोनों झोले अपने कब्जे में ले रखे हैं और बूढ़ा
व्यक्ति दोनों हाथ जोड़े वाकई रो रहा है. एकदम दिमाग में विचार कौंधा कि यदि कहीं हमारे
बाबा कभी ऐसे अकेले परेशानी में पड़ जाते तो? बस जैसे ही ये विचार
उभरा वैसे ही रास्ते भर लिए गए तमाम सारे निर्णयों पर परदा पड़ गया.
बूढ़े व्यक्ति की
तरफ तेजी से बढ़े कदम रुकते-रुकते तीन-चार तेज तमाचे ऑटो वाले के चेहरे को लाल कर चुके
थे और दोनों झोले बूढ़े बाबा के हाथ में थे. आनन-फानन हुई इस ठुकाई कार्यवाही से ऑटो
वाला हड़बड़ा गया. इससे पहले कि हम उन बूढ़े बाबा को प्लेटफॉर्म की तरफ ले जा पाते, आसपास खड़े चार-पांच ऑटो वालों ने हमें घेर लिया
और चिल्लाने लगे. हमारे कुछ बोलने-कहने से पहले ही एक सैन्य वर्दीधारी व्यक्ति ने पीछे
से आकर तेज आवाज़ में उस चिल्लाहट का कारण जानना चाहा. हमारे पूरी बात बताते ही उसने
कहा, बेटा, तू बाबा को छोड़कर आ. इसे
मैं देखता हूँ. उस वृद्ध व्यक्ति को प्लेटफॉर्म की तरफ पहुँचाते
हुए पलट कर देखा तो ऑटो वाला उस सैन्य वर्दीधारी से दो-तीन तमाचे और खाता नजर आया.
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