हमारी पूरी गैंग
के घर लगभग एक ही दिशा में थे. जीआईसी से छुट्टी के बाद हम सब एकसाथ ही घर वापसी करते
थे. पूरे रास्ते हुल्लड़, मस्ती, शरारतें होती रहतीं. तब आज की तरह न तो बहुत ज्यादा
ट्रैफिक हुआ करता था और न ही बाइक के स्टंट. साइकिलों, रिक्शों
की ही आवाजाही अधिक रहती थी. इक्का-दुक्का स्कूटर और कभी-कभी कोई मोटरसाइकिल,
जिन्हें हम बच्चे फटफटिया कहते थे, दिख जाया करती
थीं. लेम्ब्रेटा स्कूटर अपने अजब से हावभाव के कारण आसानी से पहचाने में आता. इसके
साथ ही बजाज, प्रिया, सूर्या के स्कूटर
भी अपनी उपस्थिति बनाये हुए थे. इन स्कूटरों के बीच बुलेट, येज़दी
और राजदूत फटफटियाँ अपनी दमदार आवाज़ के कारण दिल-दिमाग में बसी थीं. इन सबके बाद भी
शहर की सड़कें खाली-खाली ही रहती थीं. इसके अलावा तब शहर के नागरिक भी हम बच्चों को
सड़क पर पूरा स्पेस देते थे, अपनी शरारतों को संपन्न करने का.
निश्चित सी दिनचर्या
के बीच हम मित्रों की कॉलेज से घर वापसी हो रही थी. हा-हा, ही-ही अपने निर्धारित रूप में चल रही थी. आसपास
के लोग, दुकान वाले, रिक्शे वाले हम बच्चों
के मजाक का निशाना बनते थे, उस दिन भी बन रहे थे. तभी हम लोगों
के बगल से एक स्कूटर बिना आवाज़ के निकला. हल्का आसमानी-सफ़ेद रंग का, नई अलग सी डिजाईन का स्कूटर देख हम सब चौंक से गए. चौंकने के कई कारण थे. एक
तो अभी तक के चिरपरिचित एकरंग के स्कूटरों से इतर यह स्कूटर दो रंग का था. दूसरे तेज
फट-फट आवाज़ के स्कूटरों से बिलकुल अलग लगभग खामोश आवाज़ वाला स्कूटर भी अपने आपमें चौंका
रहा था. तीसरे तब के स्कूटरों में पीछे लगी स्टेपनी से इतर इसमें एक तरह का खालीपन
भी आश्चर्य में डाले थे. जिस धीमी रफ़्तार से वह स्कूटर बगल से निकला, उससे कई गुना तीव्र गति में ये सब आश्चर्य आँखों के सामने से घूम गए. इस आश्चर्यजनक
अकबकाहट में हमारे मुँह से निकल पड़ा, निकल क्या पड़ा चिल्लाहट
सी गूँज उठी – देखो, बाबा आदम के ज़माने
का स्कूटर.
इसके बाद स्कूटर
उतनी ही तेजी से रुका, जितनी तेजी से हमारे शब्द निकले थे. स्कूटर चलाने वाले युवा सज्जन,
जिनके बारे में मालूम चला कि बड़े सेठ जी हैं, उतर
कर, बड़ी ही रोब-दाब के साथ हम बच्चों को हड़काने लगे. हम सब पूरी
मौज के साथ उन सेठ जी की मौज लेने लगे. बात बढ़ते-बढ़ते हाथापाई, पत्थरबाजी जैसी स्थिति तक आने की आशंका दिखाई देने लगी तो आसपास के दुकानदारों
ने उनको समझाने की कोशिश की. इस कोशिश में वे पूरी हनक के साथ उस स्कूटर की कीमत बताते
हुए ऐसा एहसास दिलाने लगे मानो हम लोगों ने उनके विशिष्ट स्कूटर की घनघोर बेइज्जती
कर दी हो.
बहरहाल वे सज्जन
खिसियाहट के साथ अपने स्कूटर में बैठे और सेल्फ बटन के द्वारा उसे स्टार्ट कर वहाँ
से निकल लिए. रंग, आकार, आवाज़ से अभी तक आश्चर्य में गोते खा रहे हम बच्चों
के लिए ये एक और अचम्भा था कि स्कूटर बटन से स्टार्ट होता है, झुका कर किक मारने से नहीं. ये आगे बढ़ता है तो खटर-पटर किये गियर बदले बिना.
आँखों में विस्मय की चमक लिए हम बच्चों के मुंह से अबकी एकसाथ फिर वही शब्द ‘बाबा आदम के ज़माने का स्कूटर’ गूँजे मगर इस बार पिछली
बार के मुकाबले और जोर की आवाज़ से.
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