Saturday, 12 January 2019

अपनों के पदचिन्हों पर चलने का सुखद एहसास


हमारा प्राथमिक विद्यालय यद्यपि कक्षा आठ तक था किन्तु घर में सभी का निर्णय हुआ कि कक्षा छह से आगे की पढ़ाई के लिए हमारा एडमीशन राजकीय इंटर कॉलेज में करवाया जाये. पुराना चिरपरिचित स्कूल, दोस्त, शिक्षक छूटने का बुरा लग रहा था साथ ही नए स्कूल में जाने की ख़ुशी भी हो रही थी. इसके बीच जीआईसी में एडमीशन को लेकर गर्व मिश्रित ख़ुशी का एहसास भी हो रहा था. ऐसा इसलिए महसूस हो रहा था क्योंकि जीआईसी के आरम्भिक स्वरूप में संचालित स्कूल में हमारे बाबा जी ने भी अध्ययन किया था. उनके समय यह इंटरमीडिएट तक न होकर मिडिल तक ही संचालित होता था. बाबा जी के बाद उसी जीआईसी में हमारे सबसे छोटे भैया चाचा (श्री धर्मेन्द्र सिंह सेंगर) और हमारे बैंगलोर वाले मामा (श्री सुन्दर सिंह क्षत्रिय) ने भी पढ़ाई की थी. ऐसे विद्यालय में अपने पढ़ने का सोचकर ही प्रसन्नता हो रही थी, जहाँ हमारे पूर्वज अध्ययन कर चुके थे. उस समय जीआईसी में प्रवेश परीक्षा के आधार पर एडमीशन मिला करता था. 

प्रवेश परीक्षा देने जाने पर पहली बार जीआईसी की भव्य इमारत को देखा. अंग्रेजी वास्तुकला का प्रतीक वह बुलंद इमारत अपनी भव्यता के साथ सबको एक नजर में सम्मोहित कर जाती थी. हमें भी उसका सम्मोहन अपनी तरफ खींच रहा था मगर एक गौरव के साथ, एक आशीर्वाद के साथ, अपनत्व की भावना के साथ. इमारत में घुसते हुए अपने ही घर में पहुँचने जैसा गौरवान्वित करने वाला एहसास हुआ. ऐसा लगा था जैसे यहाँ से शिक्षित हुए हमारे परिवार के लोग हमें अपना आशीर्वाद दे रहे हों. 

प्रवेश परीक्षा देने के बाद, जब तक पिताजी लेने नहीं आये तब तक पूरी इमारत का एक चक्कर लगाकर, उसकी दीवारें छू-छूकर अपने बुजुर्गों की उपस्थिति को महसूस करने का प्रयास किया. बड़े-बड़े कमरे, बड़ा सा हॉल, खूब लम्बा-चौड़ा मैदान, हरी-भरी बगिया, घने छायादार वृक्ष सब मन मोहने में लगे थे. उस छोटी सी अवस्था में सबको छू-छूकर उनमें महसूस होती अपनों की छवि-खुशबू से एकरूप होने का प्रयास किया. प्रवेश परीक्षा का परिणाम आया और हम वहां के लिए चयनित हो गए. हमारी ख़ुशी की सीमा न रही. 

कक्षा छह से इंटरमीडिएट तक जीआईसी हमारी शिक्षा का केंद्र रहा. वहाँ चयनित होने, प्रवेश लेने की ख़ुशी उस समय और बढ़ गई जबकि पुराने स्कूल के कुछ मित्रों ने भी वहां प्रवेश पा लिया. समय के साथ जीआईसी ने भी बहुत से दोस्त दिए. कुछ पढ़ाई तक साथ रहने के बाद दूर हो गए, कुछ आज तक साथ हैं और कुछ तो परिवार का हिस्सा ही बन गए हैं. समय के साथ आगे बढ़ते रहने, दोस्तों के साथ आगे बढ़ते रहने ने हमारी ज़िन्दगी को और जीवंत बनाया है.

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