Wednesday 6 June 2018

नए स्कूल में सबकुछ नया-नया


पहले स्कूल का पहला दिन तो जाने और आने के साथ ही समाप्त हो गया था. उसके बाद तो ये भी याद नहीं कि दूसरे स्कूल में जाना कितने दिन बाद हुआ था. उम्र का एक लम्बा समय गुजरने के कारण उपजी याददाश्त-दोष वाली इस स्थिति के बाद भी पहले स्कूल का पहला दिन अभी तक याद है तो दूसरे नए स्कूल का पहला दिन भी अभी तक बहुत अच्छे से याद है. तैयार होकर, तेल-फुलेल के साथ अपने बच्चा चाचा के साथ स्कूल पहुँचे. चाचाओं में दूसरे नंबर के बच्चा चाचा, जो सामाजिक प्रस्थिति में श्री सुरेन्द्र सिंह सेंगर के नाम से जाने जाते हैं, हम सभी बच्चों के अत्यंत प्रिय चाचा हैं. भारतीय स्टेट बैंक में अनेक उच्चाधिकारी पदों पर अपनी निष्ठापूर्ण सेवाएँ देने के बाद वर्तमान में सेवानिवृत्ति पश्चात् भोपाल में निवास कर रहे हैं. बच्चा चाचा के स्नेहिल और एकसमान व्यवहार, स्वभाव को बचपन से अद्यतन ज्यों का त्यों, बिना किसी परिवर्तन के महसूस करते रहे हैं. 

हाँ तो, अपने नए स्कूल के पहले दिन हम अपने इन्हीं बच्चा चाचा के साथ स्कूल के लिए चल पड़े. स्कूल पहुँचे तो हम सारे जरूरी साजो-सामान से सुसज्जित थे, बस कमी थी तो हमारे लंच बॉक्स की. सो चाचा जी हमें स्कूल में छोड़कर बाजार को निकल गए आखिर हमारे लिए लंच बॉक्स जो सजाया जाना था.   

स्कूल में हमारा समय सही से बीत रहा था. पहले वाले स्कूल के मुकाबले खूब खुला-खुला. प्यार-दुलार देती दीदियाँ. कक्षा के गिने-चुने विद्यार्थियों के बीच पहले ही दिन छा जाना, आज भी याद है. कुछ देर बाद स्कूल की शीला आया माँ ने कक्षा में आकर हमारा नाम पुकारा. उनकी तरफ देखा तो आया माँ अपने हाथ में एक नया टिफिन बॉक्स लिए खड़ी हैं और स्कूल के बाहर चाचा जी हमारी कक्षा की तरफ निहारते खड़े हुए थे. लाल-सफ़ेद रंग का गोल टिफिन, जो कई वर्षों तक हमारे लिए अपनी सेवाएँ देने के बाद घर के अन्य कामों में प्रयोग होने लगा.

भोजनावकाश के समय अपने लंच बॉक्स को खोला तो उसमें दालमोंठ, बिस्किट, टॉफी हमारे स्वागत में तत्पर थे. घर के सभी लोगों से, अम्मा से सुना है कि हमने भोजन बहुत देर से, लगभग छह-सात वर्ष की उम्र से करना शुरू किया था. तब तक दूध, बिस्किट, दालमोंठ और बाकी चट्ठा-मिट्ठा से काम चलाया जाता था, अपनी भूख मिटाने को. लंच बॉक्स में अपना मनपसंद भोजन देख मन प्रसन्न हो गया और हम स्कूल का पहला दिन पूरा समय बिताकर ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आये. यही स्कूल कक्षा पाँच तक हमारी नींव को मजबूत करता रहा.

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