Monday, 19 September 2016

इतनी सी है तमन्ना इस जीवन की


कोई भी प्राकृतिक शक्ति जो जन्म-मृत्यु को संचालित-नियंत्रित करती होगी, उसने हमारा समय भी निर्धारित कर रखा होगा. मनुष्य कुछ स्थितियों, प्रस्थितियों को स्वयं बनाता, प्राप्त करता है. कुछ की प्राप्ति उसको पारिवारिकता के चलते प्राप्त होती है. कुछ स्थितियों का निर्माण उसके लिए समाज करता है. कुछ का निर्माण वही अदृश्य ताकत कर रही होती है जो जन्म-मृत्यु को नियंत्रित-संचालित कर रही होती है. जन्म-मरण के इस पूर्व-निर्धारित अथवा किसी शक्ति-संपन्न के द्वारा निर्धारित किये जाने की समझ न बना पाने के कारण, उस रहस्यमयी सत्ता की अनेक परतों को न सुलझा पाने के कारण ही मनुष्य उसे सर्वशक्तिमान समझता है. 

हाँ तो, उसी सर्वशक्तिमान, रहस्यमयी सत्ता की पूर्व-निर्धारित योजना के अनुसार हमको धरती पर अवतरित होना था, सो हो गए. हाहाहा, आपको अवतरित शब्द पढ़कर आश्चर्य लगा होगा, कहिये हँसी भी आई हो? भले ही आई हो पर यह हमारा अवतरण ही कहा जायेगा क्योंकि समूचे परिवार की विशेष माँग पर हमारा जन्म हुआ. किसी समय जमींदारी व्यवस्था से संपन्न क्षत्रिय परिवार के वर्तमान शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, स्नेहिल परिवेश में उस परिवार के असमय अदृश्य हो गए एक चमकते सितारे के उत्तराधिकार के रूप में हमको हाथों-हाथ लिया गया. हाथों-हाथ क्या, सभी ने अपनी पलकों पर बिठाया, अपनी साँसों में बसाया, अपनी धड़कनों में महसूस किया. हमारी एक-एक साँस समूचे परिवार की साँस बनी. हमारा आँख खोलना उनकी सुबह बनी तो पलक झपकाना उनकी हँसी बनी. हमारा रोने की कोशिश मात्र ही समूचे परिवार के लिए किसी प्रलय से कम नहीं होता.

परिवार का स्नेह, लाड़-प्यार 19 सितम्बर 1973 से जो मिलना शुरू हुआ, वह आजतक कम न हुआ. अपनत्व, ममत्व का सूखा कभी सोचने को भी नहीं मिला. छोटे भाईयों-बहिनों के लिए बड़े भाईजी के रूप में हम भले ही उनको संबल दिखाई पड़ते हों मगर अपने से हर बड़े के लिए वो नन्हा चिंटू हमेशा उतना ही छोटा रहा. यह सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता कि उम्र के चार दशक बीत जाने के बाद भी पारिवारिक स्नेह का ग्राफ कम होने के बजाय बढ़ता ही रहे. इस ग्राफ बढ़ने का कारण साल-दर-साल नए-नए रिश्तों का बनते-जुड़ते जाना भी रहा. परिवार में नए-नए सदस्यों का शामिल होना होता रहा, कभी दामादों के रूप में, कभी बहुओं के रूप में तो कभी भावी पीढ़ी के रूप में.

कामना उस रहस्यमयी सत्ता से, जिसने इस जन्म का निर्धारण इस परिवार में किया, कि यदि जन्म-मरण का चक्र सतत प्रक्रिया है तो वह सदैव इसी परिवार में जन्म को अनिवार्य रूप से निर्धारित कर दे. श्रीमती किशोरी देवी-श्री महेन्द्र सिंह सेंगर की संतान के रूप में ही हमारा जन्म अनिवार्य कर दे. 

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