हमको अपने छोटे
भाई हर्षेन्द्र के साथ आगरा से एक परीक्षा देकर कानपुर आना था. रेलवे स्टेशन पहुँचकर
पता लगा कि उस समय कानपुर के लिए कोई ट्रेन नहीं है. यदि आगरा से टुंडला पहुँच कर वहाँ
से आसानी से कानपुर के लिए ट्रेन मिल जायेगी. आगरा से टुंडला तक बस से आने के बाद टुंडला
स्टेशन पर जैसे ही पहुँचे पता लगा कि एक ट्रेन आ रही है. पैसेंजर ट्रेन थी और इसके
बाद दो-तीन घंटे कोई ट्रेन भी नहीं थी, कानपुर पहुँचना अत्यावश्यक था. इस कारण से पैसेंजर ट्रेन में बैठने
के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं था.
टिकट खिड़की पर जबरदस्त
भीड़ होने के चलते टिकट मिलता संभव न लगा. पहले सोचा कि बिना टिकट ही चढ़ जायें पर कभी
बिना टिकट यात्रा न करने के कारण से हिम्मत नहीं हो रही थी. सोचा-विचारी में समय न
गँवा कर हमने तुरन्त सामने दरवाजे पर खड़े एक टिकट चेकर से अपनी समस्या बताई.
उस ने
बिना कोई तवज्जो दिये पूरी लापरवाही से कहा कि बैठ जाओ, पैसेंजर में कोई नहीं पकड़ता.
भाईसाहब कोई दिक्कत
तो नहीं होगी? हमने शंका दूर करनी चाही.
उसको लगा कि कोई
अनाड़ी हैं जो पहली बार बिना टिकट यात्रा करने की हिम्मत जुटा रहे हैं. सो उसने थोड़ा
सा ध्यान हम लोगों की ओर दिया और बताया कि वैसे बिना टिकट जाने में कोई समस्या नहीं
फिर भी यदि टिकट लेना है तो दो स्टेशन के बाद यह गाड़ी थोड़ी देर तक रुकती है, वहाँ से ले लेना.
उनके इतना कहते
है जैसे हमें कोई संजीवनी मिल गई हो. हम दोनों भाई तुरन्त लपके क्योंकि गाड़ी भी रेंगने
लगी थी. डिब्बे के अन्दर पहुँचते ही बैठ भी गये, सीट भी मिल गई पर इसके बाद हमारी जो हालत हुई कि पूछिए मत. आने-जाने
वाला हर आदमी लगे कि टिकट चेक करने वाला आ गया. कभी इस तरफ देखें, कभी उस तरफ देखें. लगभग 45 मिनट की यात्रा के बाद वह
स्टेशन आया जहाँ से टिकट लिया जा सकता था. तुरत-फुरत में दो टिकट लिए गए. अब सुकून
मिला और कानपुर तक आराम से आये. आज भी छोटी सी मगर बिना टिकट यात्रा याद है.
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