Friday, 25 May 2018

आभासी दुनिया का प्यार भरा एहसास


आँखों में चुम्बकीय आकर्षण, चेहरे पर मासूमियत का सौन्दर्य समेटे वह फ्रेंडरिक्वेस्ट के सहारे दोस्तों के दायरे में शामिल हुई. सोशल मीडिया की इस आभासी दुनिया में सभी लोग वास्तविक दुनिया से ही आते हैं. वे चाहें अपने वास्तविक रूप में आपसे संपर्क रखते हों या फिर किसी नकली प्रोफाइल से. बहरहाल, एक आकर्षित करने वाले सौन्दर्य बोध के साथ उसकी उपस्थिति बराबर सोशल मीडिया पर रहती थी. एक-दूसरे की पोस्ट पर टिप्पणियां करने, किसी पोस्ट पर तर्क-वितर्क करने से आरम्भ हुआ आभासी बातचीत का सिलसिला सार्वजनिकता से उतर कर इनबॉक्स तक आ गया. 

राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक विषयों सहित अनेक विषयों पर समय-समय पर चर्चा होती. इन सबके बीच एक अनाम सा, अबूझ सा रिश्ता उसके साथ बनते दिखने लगा. यूँ तो आभासी दुनिया में अनेक लोग इस तरह से अपनत्व की डोर में बंधे हैं जिनसे कभी मिलना नहीं हुआ मगर ऐसे लगता है जैसे बरसों से जान-पहचान हो. कुछ ऐसा ही उसके साथ था. मिलना कभी हुआ नहीं, एक शहर के वासी नहीं, सोशल मीडिया के अलावा कभी, कहीं देखा भी नहीं पर रिश्ते की आत्मीयता बरसों-बरस पुरानी महसूस होती.

शहरों की दूरियाँ बनी रही, सोशल मीडिया का आभासीपन शनैः-शनैः बढ़ता सा लगा. मिलने की उत्कंठा बढ़ती तो मिलने का वादा भी किया जाता पर सबकुछ फिर उसी आभासी दुनिया के इर्द-गिर्द केन्द्रित होकर रह जाता. इसे शायद इत्तेफाक ही कहा जायेगा कि सोशल मीडिया के बहुत सारे लोगों से अनेक अवसरों पर मिलना होता रहा. किसी से हम जाकर मिले, कोई हमसे आकर मिला. किसी ने हमें अपने घर बुलाया, कोई हमारे घर तक चल कर आया. मिलने-जुलने की इस प्रक्रिया के बाद भी उससे मिलना न हो सका. आभासी दुनिया की वह मित्र, वह मित्रता आज भी वहीं स्थित है जहाँ से आरम्भ हुई थी.

सामाजिकता के नाते, वैचारिकता के चलते बहुत आगे तक, बहुत दूर तक चलने, साथ देने की बात हुई मगर वैचारिक रूप से आगे बढ़ने के बाद भी एहसास होता है कि आगे बढ़ना हो ही नहीं सका. समय के साथ-साथ इस वैचारिक यात्रा ने कभी शिथिलता पकड़ी तो कभी गति भी पकड़ी. भौतिक रूप से अभी तक आमने-सामने बैठकर बातचीत नहीं हुई. एक-दूसरे को देखा भी नहीं और पता नहीं उस रहस्यमयी सत्ता ने यह सम्मिलन कब, कैसे, कहाँ निर्धारित कर रखा है? निर्धारित कर भी रखा है या नहीं, यह भी नहीं पता?

फ़िलहाल तो आभासी दुनिया ने बहुत से मित्र दिए, सहयोग करने वाले, प्यार करने वाले, मदद करने वाले, अपना समझने वाले, विश्वास करने वाले, वह भी उनमें से एक है. क्या ये आवश्यक है कि आप सब उसे उसके नाम से ही पहचानें? क्या आवश्यक है कि उसका नाम ज़ाहिर किया ही जाये?



Thursday, 10 May 2018

झंडे में अंतर न कर सके बच्चे


सम्पूर्ण देश की तरह उरई में भी अन्ना के स्वर से स्वर मिला कर नगरवासी अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे थे. अनशन समाप्ति वाले दिन भी सभी के चेहरे पर एक प्रकार की खुशी, एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिल रहा था. क्या बच्चे, क्या जवान और क्या बुजुर्ग सभी अपनी ही धुन में मस्त थे. उरई में लगातार बारह दिनों से चल रहे अनशन, धरने के समाप्त होने के समय गांधी चबूतरे पर सभी उत्साहीजन एकत्र होकर आगे की रणनीति पर विचार करने के साथ-साथ एक दूसरे को बधाइयां दे रहे थे, मुंह मीठा करवा रहे थे. 

उत्साह में तिरंगा आसमान को छू रहा था. बच्चे भी अपनी लम्बाई से दो-चार गुने लम्बे झंडे लेकर उत्साह में झूम रहे थे. चार बच्चे ऐसे थे जो पहले दिन से ही बराबर धरनास्थल पर रहते थे और पूरे जोश के साथ अपनी उपस्थिति को दर्ज करवाते थे. उनकी उम्र में सम्भवतः बच्चों को पता ही नहीं होता है कि धरना क्या है, अनशन क्यों किया जाता है, भ्रष्टाचार क्या है, अन्ना और सरकार के बीच का टकराव क्या है पर फिर भी वे चारों बच्चे अपने पूर्ण भोलेपन के साथ हमारे आन्दोलन का हिस्सा बनते.

उनकी मासूमियत का दृश्य इस आन्दोलन के अन्तिम दिन दिखा. खुशी से झूमते लोगों के साथ नाचते-थिरकते बच्चों के साथ उछलती-कूदती बच्ची एकाएक चिल्ला पड़ती है, हाय दइया....... हम लोगों ने घबराकर, चौंककर उसकी तरफ देखा. उसकी पूरी बात को सुनकर एकदम से हंसी छूट गई. उस बच्ची ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ झंडा एकदम छोड़कर चिल्लाई, हाय दइया, जो तो कांग्रेस को झंडा है, जो तिरंगा नईंयां.

दरअसल उसके हाथ में जो तिरंगा था उसमें सफेद पट्टी में अशोक चक्र नहीं बना हुआ था और उस मासूम को तो यही पता था कि जिस तिरंगे की सफेद पट्टी में नीला अशोक चक्र बना हो वही तिरंगा ध्वज है. उसको समझाकर उसके हाथों में उस तिरंगे को थमाया और वह बच्ची भी बात को समझकर पुनः उसी जोश में भारत माता की जय, इंकलाब जिन्दाबाद करने में अपने साथियों के साथ लग गई. इधर हम मित्र इस बात पर विचार करने लगे कि यदि बच्चों में राजनैतिक दलों के प्रति इस तरह की भावना है तो अब वाकई देश में राजनैतिक सुधारों की आवश्यकता है; घनघोर आवश्यकता है.